अपराध, परिचय, अपराध के कारण, आपराधिक वातावरण

अपराध

दंडाभियोग समाजविरोधी क्रिया है;

समाज द्वारा निर्धारित आचरण का उल्लंघन या उसकी अवहेलना दंडाभियोग है;

यह ऐसी क्रिया या क्रिया में त्रुटि है, जिसके लिये दोषी व्यक्ति को कानून द्वारा निर्धारित दंड दिया जाता है।अर्थात अपराध कानूनी नियमो कानूनों के उल्लंघन करने की नकारात्मक प्रक्रिया है जिससे समाज के तत्वों का विनाश होता है ।

परिचय

समाज जिसमें व्यक्ति रहता है, मानवीय समाज कहलाता है। मानवीय समाज में मानवीय नियम और कानून समाज व्यवस्था को चलाने के लिये अलग-अलग समाज के लिये बनाये जाते है। बने हुए सामाजिक नियमों को तोडने को अपराध की श्रेणी में गिना जाता है। सामाजिक नियमों में आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और मानवीय रहन सहन के नियम, विभिन्न समय और सभ्यताओं के अनुसार प्रतिपादित किये जाते हैं।
अपराध जिस समय मानव समाज की रचना हुई अर्थात्‌ मनुष्य ने अपना समाजिक संगठन प्रारंभ किया, उसी समय से उसने अपने संगठन की रक्षा के लिए नैतिक, सामाजिक आदेश बनाए। उन आदेशो का पालन मनुष्य का ‘धर्म’ बतलाया गया। किंतु, जिस समय से मानव समाज बना है, उसी समय से उसके आदेशों के विरुद्ध काम करनेवाल भी पैदा हो गए है और जब तक मनुष्य प्रवृति ही न बदल जाए, ऐसे व्यक्ति बराबर होते रहेंगे।
युगों से अपराध की व्याख्या करने का प्रयास हो रहा है। अतएव के. सेन ने अपराध की सता इतिहास काल के भी पूर्व से मानी है। अतएव इसकी व्याख्या कठिन है। पूर्वी तथा पश्चिमी देशों के प्रारंभिक विधानों के नैतिक, धार्मिक तथा सामाजिक नियमों का तोड़ना समान रूप से अपराध था। सारजेंट सटीफन ने लिखा है कि समुदाय का बहुमत जिसे सही बात समझे, उसके विपरीत काम करना अपराध है। ब्लेकस्टन कहते हैं कि समुचे समुदाय के प्रति कर्तव्य है तथा उसके जो अधिकार हैं उनकी अवज्ञा अपराध का निर्णय नगर की समूची जनता करती थी। आज के कानून में अपराध ‘सार्वजनिक हानि’ की वस्तु समझा जाता है।
दो सौ वर्ष पूर्व तक संसार के सभी देशों की यह निश्चित्त नीति थी कि जिसने समाज के आदेशों की अवज्ञा की है, उससे बदला लेना चाहिए। इसीलिए अपराधी को घोर यातना दी जाती थी। जेलों में उसके साथ पशु से भी बुरा व्यवहार होता था। यह भावना अब बदल गई है। आज समाज की निश्चित धारणा है कि अपराध, शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार का रोग है, इसलिए अपराधी की चिकित्सा करनी चाहिए। उसे समाज में वापस करते समय शिष्ट, सभ्य, नैतिक नागरिक बनाकर वापस करना है। अतएव कारागार यातना के लिए नहीं, सुधार के लिए है।

अपराध के कारण

दंडाभियोग के भिन्न-भिन्न कारण हो सकते हैं; यथा, क्षणिक आवेग, भावुकता, पूर्वविचार, भावी विनाश से रक्षा, आदि। दृष्टांत के लिये राजनीतिक हत्याओं को ले सकते हैं। किसी राजनीतिक लक्ष्य की पूर्ति के निमित्त कुछ लोग षड्यंत्र कर राज्य के प्रमुख की हत्या कर डालते हैं। ऐसा पूर्व विचार से ही होता है, क्षणिक आवेग से नहीं। प्रत्यक्ष हत्यारा भावुकता से, पैसे के लोभ से या अपने दल के लक्ष्य की पूर्ति के कारण अपराध करता है। उसके गिरफ्तार होने पर इस आशंका से कि कहीं वह रहस्य का उद्घाटन कर अपने साथियों का विनाश न करवा दे, षडयंत्रकारी उसका वध कर देते हैं। इसी प्रकार डकैती करते हुए जब एक डाकू घायल होकर गिर पड़ता है तो उसके साथी उसे ढोकर ले जाने में अक्षम होने के कारण उसका सिर काट ले जाते हैं, ताकि उसके मृत शरीर के द्वारा उसकी पहचान न हो सके या जीवित रहने पर क्षमा पाने के आश्वासन से वह अपने दल का रहस्य न खोल दे।

आपराधिक वातावरण

जन्म या आनुवंशिकता (heredity) का दंडाभियोग से क्या संबंध है, निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता; किंतु हम वातावरण के प्रभाव अस्वीकार नहीं कर सकते। यह साधारण अनुभव है कि कलुषित वातावरण अपराध करने की भावना को प्रोत्साहन देता है। चोरों की संगति में यदि किसी शिशु को रख दिया जाय तो क्रमश: उसकी मनोवृत्ति चोरी की ओर अग्रसर अवश्य होगी। इस प्रकार यदि कम अवस्था के शौकिया अपराधी को साधारण कैदियों के साथ जेल में रखा जाय तो इस स्थिति का प्रभाव उसे संभवत: कारावास से मुक्त होने पर अपराध करने को प्रेरित करे। अत: प्रगतिशील समाज में शौकिया अपराधियों को दंडाभियोग से विरत करने के अभिप्राय से अपराध को प्रोत्साहन देनेवाले वातावरण से पृथक् रखने की योजना की गई है। इंग्लैंड में प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व ही वोर्स्टल नामक संस्था खुली। शौकिया तथा कम अवस्था के अपराधियों का सुधार करना इनका उद्देश्य था। क्रमश: अन्यान्य प्रगतिशील देशों में यह संस्था खुली। प्रोबेशन ऐक्ट भी लागू हुआ। शिशु एवं युवक अपराधियों को अपराध के लिये दंडित होने पर उन्हें जेल में न रखकर उनके अभिभावकों द्वारा नेकचलनी का आश्वान मिलने पर उन्हें परिवीक्षा (probation) पर छोड़ दिया जाता है। यदि हत्या आदि गुरुतम अपराधों के लिये वे दंडित हुए हैं, तो उन्हें बोरस्टल संस्था के हवाले किया जाता है। इस संस्था में स्वस्थ वातावरण रहता है, जिससे अपराधियों के सुधार में सहायता मिलती है। उन्हें उपयोगी व्यवसाय की भी शिक्षा दी जाती है, ताकि दंड की निर्धारित अवधि पूरी कर घर लौटने पर वे सच्चाई से अपनी जीविका चला सकें।

आपराधिक श्रेणियां

समाज में मनुष्य के प्रति तीन प्रकार के अपराध होते हैं, अर्थात्‌ (क) जीवन के प्रति, (ख) शरीर के प्रति, अथवा (ग) स्वाधीनता के प्रति।

मनुष्य के जीवन के प्रति किए जानेवाले अपराध चार प्रकार के होते हैं –
(१) नरहत्या
(२) आत्महत्या
(३) भ्रूणहत्या और
(४) शिशुहत्या

नरहत्या

एक मनुष्य द्वारा किसी दूसरे मनुष्य का वध नरहत्या कहलाता है। प्राचीन काल में नरहत्या के सभी मामलों में एक सा दंड दिया जाता था। लेकिन आधुनिक काल में उच्चतर भावनाओं के जन्म तथा आपराधिक मनोविज्ञान के सिद्धांत का विकास होने के साथ नरहत्या के अपराधियों की दंडव्यवस्था में अंतर उत्पन्न हो जाता है। आधुनिक धारणाओं के अनुसार नरहत्या या तो वैध होती है या अवैध (अथवा अभियोज्य)।

अभियोज्य नरहत्या (अर्थात्‌ अवैध नरहत्या) या तो हत्या की श्रेणी में आती है या हत्या की श्रेणी में नहीं आती। यदि कोई व्यक्ति (१) जान से मार डालने के इरादे से अथवा (२) ऐसी शारीरिक चोट पहुँचाने के इरादे से जिससे मृत्यु संभव हो अथवा (३) यह जानते हुए कि उसके ऐसे कार्य से मृत्यु की संभावना हो सकती है, मृत्यु का कारण बनता है तो ऐसा व्यक्ति अभियोज्य नरहत्या का अपराध करता है।

 

आत्महत्या

स्वयं अपनी जान लेना है। आत्महत्या का अपराधी दंडनीय नहीं है क्योकि अपराधी जीवित ही नहीं बचता। केवल आत्महत्या का प्रयत्न धारा ३०५ और ३०६ के अतर्गत दंडनीय है। आत्महत्या साधारणत: वित्तीय विनाश, पारिवारिक कलह, निराश्रयता, शारीरिक संताप अथवा प्रेम की असफलता आदि के कारण की जाती है। इसके लिए गोली मारने, फाँसी पर लटकने, जहर खाने, पानी में डूबने, आग में जलने, गला काटने जैसे साधनों का प्रयोग किया जाता है।
हत्या करने के प्रयत्न की अपेक्षा आत्महत्या के प्रयत्न के लिए दंड हल्का है क्योंकि विधि या कानून आत्महत्या को दंड की अपेक्षा दया का अधिक उपयुक्त विषय मानता है।

भ्रूणहत्या

भ्रूण अथवा गर्भस्थ शिशु का विनाश है। यह अपराध अहस्तक्षेप्य है अर्थात्‌ पुलिस उस समय तक अपराधी के विरुद्ध काररवाई नहीं कर सकती जब तक इसके बारे में शिकायत न की जाए।
गर्भस्थ शिशु की माँ भी इस अपराध के लिए दंडनीय है बशर्ते सद्भावनावश उसके जीवन की रक्षा के लिए गर्भपात न कराया गया हो। यदि माँ नहीं जानती कि उसको कोई गर्भनाशक ओषधि खिलाई गई है तो वह दंडनीय नहीं है। सब ऐसे अपराध धारा ३१२ से लेकर ३१४ के अंतर्गत दंडनीय हैं।

शिशुहत्या

यह अपराध बच्चे का परित्याग करने अथवा उसके जन्म को छिपाने तथा उसको फेंक देने से होता है। साधारणत: हरामी बच्चों के माता-पिता यह अपराध करते हैं क्योंकि वे अपने अनैतिक कार्य के प्रमाण को सार्वजनिक दृष्टि से छिपाने के लिए चिंतित रहते हैं। संकटग्रस्त माता-पिता भी ऐसा कार्य करने के लिए झुक सकते हैं।
जन्म के बाद जब तक बच्चे में विवेक नहीं आ जाता अर्थात्‌ १२ वर्ष की अवस्था तक विधि उसको संरक्षण प्रदान करती है। इसलिए यदि उसका पिता अथवा माता अथवा अभिभावक उसको किसी जगह छोड़ आता है तो उसे दंड मिलता है। यदि बच्चा इस प्रकार परित्याग किए जाने से मर जाता है तो अपराधी, जैसी भी स्थिति हो, हत्या अथवा अभियोज्य नरहत्या के लिए दंडनीय होता है (धारा ३१७)। बच्चे के पालनपोषण का प्राथमिक उत्तरदायित्व माता-पिता पर होता है, जो उसको अस्तित्व में लाते हैं इसलिए यदि वे अपना यह कर्तव्य नहीं पालन करते तो आपराधिक विधि उनको दंड देती है।

कोई व्यक्ति या तो स्वयं अथवा निमित्त रूप में अपराधी हो सकता है या घटना से पूर्व अथवा पश्चात् सहायक हो सकता है। कोई या तो स्वयं अपराध करता है या अन्य किसी एजेंट से कराता है, जो कानूनन अपराध के लिये उत्तरदायी नहीं होता, यथा सात साल से कम अवस्था का शिशु, कोई पशु या कोई मशीन। ऐसा व्यक्ति प्रधान अपराधी कहलाता है। द्वितीय श्रेणी का प्रधान वह है जो घटनास्थल पर उपस्थित रहकर प्रधान को अपराध कर्म में सहायता देता है या उसे प्रोत्साहित करता है। घटना से पूर्व का सहायक वह है जो प्रधान को अपराध करने को प्रोत्साहित करता है किंतु अपराध के समय उपस्थित नहीं रहता। घटना से पश्चात् का सहायक वह है जो यह जानते हुए कि किसी ने गुरुतर अपराध किया है, उसे शरण देता है या उसे भागने में सहायता पहुँचाता है। इस प्रसंग में स्मरणीय है कि राजद्रोह में जितने लोग संमिलित होते हैं, सबके सब प्रधान अपराधी होते हैं। दंड की गुरुत्ता एवं लघुता की दृष्टि से उक्त श्रेणीकरण उपयोगी है।

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