पश्चिम बंगाल के परिणाम से बिहार में विपक्ष का बढ़ेगा हौसला, सरकार पर कम होगा भाजपा का दबाव

पश्चिम बंगाल चुनाव परिणाम का बिहार की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? यह सवाल चुनाव की घोषणा होने के समय से पूछा जा रहा है। अब परिणाम आ गया है। जवाब तुरंत नहीं मिलने जा रहा है। यह टुकड़ों में मिलेगा। इसे लोग देख भी पाएंगे। सबसे पहला असर सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन के दलों की चाल ढाल में दिखेगा। भाजपा से कम सीटें लाकर भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। उन्हें केंद्रीय नेतृत्व ने करार के तहत मुख्यमंत्री बनाया। नीतीश कह रहे थे कि वह इस पद के लिए कतई इच्छुक नहीं हैं। इसे गृह मंत्री अमित शाह ने भी स्वीकार किया। फिर भी इस पारी में नीतीश को बार-बार यह अहसास कराया जा रहा है कि भाजपा बड़ी पार्टी है। अहसान मानिए। यह पार्टी के कुछ बड़े नेताओं के बयान से जाहिर होता है। सत्ता में अधिक भागीदारी मांग के रूप में जाहिर होता है। नीतीश को नापसंद करने वाले भाजपा नेताओं को उम्मीद थी कि बंगाल में जब दो सौ पार होगा, बिहार में उन्हें खेलने के लिए मैदान मिल जाएगा। फिलहाल यह उम्मीद खत्म हो गई है। नीतीश कुमार इस हद तक इत्मीनान हो सकते हैं कि भाजपा के अंदर का वह समूह शांत रहेगा जो सरकार पर दबाव बनाने के लिए व्यग्र रहता है।विपक्ष भी बंगाल के चुनाव परिणाम का इंतजार ही कर रहा था। मुख्य विपक्षी दल राजद वहां चुनाव नहीं लड़ रहा था। उसकी ताकत तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में लगी थी। तेजस्वी यादव ने टीएमसी के पक्ष में चुनावी सभाओं को संबोधित किया। राजद ने मान लिया था कि बंगाल में भाजपा की हार में ही उसकी जीत है। इस हिसाब से राजद अपनी जीत महसूस कर सकता है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद बाहर आ गए हैं। तुरंत में लालू प्रसाद कुछ नहीं करने जा रहे हैं। लेकिन, बंगाल में अपेक्षित कामयाबी न मिलने के चलते भाजपा पर जो मनोवैज्ञानिक दबाव बन रहा है, उसे लालू प्रसाद की मौजूदगी बढ़ाएगा ही। क्या इन दोनों कारणों से बिहार की सत्ता में कोई बदलाव होगा, फिलहाल यह संभावना नजर नहीं आ रहा है। हां, यह परिणाम सत्तारूढ़ दल को अधिक सतर्क रहने की सलाह देता है।

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