कानपुर

 

गरिमा शिक्षक सम्मान समारोह

 

श्रीमद्भगवद्गीता वैदिक न्यास द्वारा छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर में स्थापित श्रीमद्भगवद्गीता वैदिक शोध पीठ एवं अखिल विश्व गायत्री परिवार के संयुक्त तत्वावधान में आज विश्वविद्यालय में वीरांगना रानीलक्ष्मी बाई सभागार में विशाल शिक्षक गरिमा सम्मेलन का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता प्रमोद भटनागर, केन्द्रीय प्रतिनिधि शान्ती कुंज हरिद्वार, स्वामी नीलमणी कृष्णदास इॅस्कान प्रमुख द्वारा अपने ओजस्वी उद्बोधन में ”शिक्षक हैं युग निर्माता “ ”छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता “ विषयक सम्मेलन अपने उद्बोधन द्वारा शिक्षक एवं छात्रों के राष्ट्र, समाज एवं धर्म के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध करा राष्टहित व समाज हित हेतु सर्वस्व समर्पण की बात कही।

श्रीमद्भगवद्गीता वैदिक न्यास द्वारा आयोजित सम्मेलन का शुभारंभ दीप प्रज्जवल गीता श्लोक एवं गायत्री मंत्रों के समवेत स्वरों द्वारा डाक्टर मार्कण्डेय अहूजा, डाक्टर प्रदीप भटनागर स्वामी नीलमणी कृष्णदास , भवानीभीख , प्रो0 विनय पाठक, डा0 उमेश पालीवाल व अन्य गणमान्यों द्वारा कर प्रारम्भ किया गया।

शिक्षक गरिमा सम्मेलन में मुख्य वक्ता प्रो0 प्रदीप भटनागर ने शिक्षक की गरिमा एवं छात्रों के प्रति कर्तव्यों पर विस्तार से चर्चा कर आज के परिप्रेक्ष्य में शिक्षकों को अपग्रेड होते हुये संस्कारवान एवं राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ आधुनिकता एवं आध्यात्म के समन्वय के साथ छात्रों को शिक्षा देने पर सार दिया, प्रो0 भटनागर ने कहा कि शिक्षक का सम्पूर्ण व्यक्तित्व छात्रा के लिये अनुकरणीय होता है छात्र शिक्षक के व्यक्तित्व में सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। उसी का अनुकरण कर छात्र अपने व्यक्तित्व को गढ़ता है इसलिये शिक्षक का प्रथम कर्तव्य है कि वह अपने व्यक्तित्व को अनुकरणीय बनाये। छात्रों को भी सम्बोधित करते हुये कहा कि पहले कर्तव्य बाद में अधिकार को अपने जीवन में श्रंगीकार करें।

सम्मेलन मध्य स्वामी कृष्णदास जी महाराज ने श्रीमद्भगवद्गीता को प्रत्येक छात्र एवं शिक्षक अपने हद्वय में उतारें तथा कृष्ण के समान शिक्षक एवं छात्र बन कर समाज को नई दिशा एवं दशा प्रदान करने पर जोर दिया। श्रीकृष्ण आज वैश्विक व्यक्तित्व बन चुके है, विश्व के अनेकोनेक देशों में श्रीकृष्ण से एवं श्रीगीता से प्रभावित होकर करोड़ो लोग भारतीय आध्यात्म की आरे झुक रहे है तथा गीता आज 140. देशों के विश्वविद्यालयों में शोध एवं ज्ञान का विशेष विषय बन चुकी है। वास्तव में श्रीकृष्ण का व्यक्त्वि एवं गीता ही पूरे विश्व में न्याय एवं शक्ति स्थापित करने में एक मात्र एक ग्रन्थ श्रावित हो रही है।

सम्मेलन के मध्य डा. मार्कण्डेय आहूजा उपाध्यक्ष जियो गीता फाउन्डेशन द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता को किस प्रकार अपने जीवन में उतार कर स्वयं को श्रीकृष्ण मानते हुये जितेन्द्रीय बन कर गीता अपने जीवन में उतार कर परिवार, समाज और राष्ट्र को सुव्यवस्थित कर शक्तिशाली और ओजस्वी बनाया जा सकता है।

सम्मेलन मध्य कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डा0 विनय पाठक ने शिक्षकों को गरिमामयी व्यक्तित्व एवं जीवन को मैनेज्ड कर संस्कारों को प्रमुखता देते हुये ज्ञान के क्षेत्र में नये प्रतिमान स्थापित करने हेतु गीता से सीख लेकर तथा गायत्री से अर्न्तमन को शक्तिशाली बनाने हेतु शिक्षकों एवं छात्रों का आहवाहन किया।

सम्मेलन में डा0 उमेश पालीवाल अध्यक्ष श्रीमद्भगवद्गीता वैदिक न्यास द्वारा आज समाज में श्रीमद्भगवद्गीता एवं गायत्री की उपयोगिता पर अपने विचार व्यक्त कर बताया कि गीता में वह असीम वैदिक ज्ञान एवं निर्देशन देती है जिससे समाज शक्तिशाली होकर न्याय प्रिय होने के साथ व्यक्तित्व का विकास कर सके। छात्रों में आज श्रीमद्भगवद्गीता की बहुत आवश्यकता है।

श्रीमान अमरनाथ ध्येयनिष्ठ गीतानुरागी ने श्रीमद्भगवद्गीता वैदिक न्यास पर विस्तार से अपने विचार व्यक्त किये।

सम्मेलन में मंच संचालन श्री अनिल कुमार गुप्ता एवं परमानन्द शुक्ल द्वारा किया गया।

सम्मेलन में प्रमुख रूप से श्रीमान भवानीभीख तिवारी, अवध बिहारी मिश्र, डा0 उमेश पालीवाल, अमरनाथ, परमानन्द शुक्ला , भूपेश अवस्थी, मुकेश पालीवाल, डा0 रोचना विश्नोई, राजीव महाना, प्रेम चन्द्र , अनिल कुमार गुप्ता, कमल त्रिवेदी, गुलशन घूपर, डा0 बलराम नरूला, अशोक तिवारी, तृशमुल मिश्रा, अरूण पुरी, अरूण कुमार, सुरजीत सिंह, डा0 अंगद सिंह, डा. यू.सी. सिन्हा, के.के. शुक्ला, रामेन्द्र अवस्थी, अरूण मिश्र, डा0 राकेश द्विवेदी, महेन्द्र सिंह आदि गणमान्य अतिथि उपस्थित रहें।

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