*++++ सीता माँ के दोषी पर श्रीराम जी की कृपा !++++*
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जब भगवान श्रीराम अपने धाम को चले उस समय उनके साथ अयोध्या के सभी पशु – पक्षी, पेड़- पोधे मनुष्य भी उनके साथ चल पड़े।
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उन मनुष्यो में श्री सीता जी की निंदा करने वाला धोबी भी साथ में था ,
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भगवान ने उस धोबी का हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उनको अपने साथ लिए चल रहे थे।
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जिस – जिस ने भगवान को जाते देखा वे सब भगवान के साथ चल पड़े कहते है की वहां के पर्वत भी उनके साथ चल पड़े।
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सभी पशु पक्षी पेड़ पोधे पर्वत और मनुष्यों ने जब साकेत धाम में प्रवेश होना चाहा तब साकेत का द्वार खुल गया ……
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पर जैसे ही उस निंदनीय धोबी ने प्रवेश करना चाहा तो द्वार बंद हो गया।
साकेत द्वार ने भगवान से कहा महाराज ! आप भले ही इनका हाथ पकड़ ले पर ये जगत जननी माता श्री सीता जी की निंदा कर चुका है
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इसलिए ये इतना बड़ा पापी है की मेरे द्वार से साकेत में प्रवेश नही कर सकता।
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जिस समय भगवान सब को लेकर साकेत जा रहे थे उस समय सभी देवी – देवता आकाश मार्ग से देख रहे थे , की माता जी की निंदा करने वाले पापी धोबी को भगवान कहा भेजते है।
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भगवान ने द्वार बन्द होते ही इधर – उधर देखा तो ब्रह्मा जी ने सोचा की कही भगवान इस पापी को मेरे ब्रह्म लोक में न भेज दे ,
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वे हाथ हिला – हिला कर कहने लगे , महाराज ! इस पापी के लिए मेरे ब्रह्म लोक में कोई स्थान नही है।
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इंद्र ने सोचा की कही मेरे इन्द्र लोक में न भेज दे , इंद्र भी घबराये , वे भी हाथ हिला – हिला कर कहने लगे , महाराज ! इस पापी को मेरे इन्द्र लोक में भी कोई जगह नही है।
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ध्रुव जी ने सोचा की कही इस पापी को मेरे ध्रुव लोक में भेज दिया तो इसका पाप इतना बड़ा है की….
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इसके पाप के बोझ से मेरा ध्रुव लोक गिर कर नीचे आ जायेगा ऐसा विचार कर ध्रुव जी भी हाथ हिला – हिला कर कहने लगे
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महाराज ! आप इस पापी को मेरे पास भी मत भेजिएगा।
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जिन – जिन देवताओं का एक अपना अलग से लोक बना हुआ था उन सभी देवताओं ने उस निंदनीय पापी धोबी को अपने लोक मे रखने से मना कर दिया।
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भगवान खड़े – खड़े मुस्कुराते हुए सब का चेहरा देख रहे है पर कुछ बोलते नही |
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उस देवताओ की भीड़ में यमराज भी खड़े थे , यमराज ने सोचा की ये किसी लोक में जाने का अधिकारी नही है अब इस पापी को भगवान कही मेरे यहाँ न भेज दे …..
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और माता की निंदा करने वाले को में अपनी यमपुरी में नई रख सकता वे घबराकर उतावली वाणी से बोले ,
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महाराज ! महाराज ! ये इतना बड़ा पापी है की इसके लिए मेरी यमपुरी में भी कोई जगह नही है।
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उस समय धोबी को घबराहट होने लगी की मेरी दुर्बुद्धी ने इतना निंदनीय कर्म करवा दिया की यमराज भी मुझे नही रख सकते
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भगवान ने धोबी की घबराहट देख कर धोबी की और संकेत से कहा तुम घबराओ मत ! मैं अभी तुम्हारे लिए एक नए साकेत का निर्माण करता हूँ ,
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तब भगवान ने उस धोबी के लिए एक अलग साकेत धाम बनाया।
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यहाँ एक चोपाई आती है !
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सिय निँदक अघ ओघ नसाए ।
लोक बिसोक बनाइ बसाए ।।
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ऐसा अनुभव होता है की आज भी वो धोबी अकेला ही उस साकेत में पड़ा है जहा न कोई देवी देवता है न भगवान ,
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न वो किसी को देख सकता है और न उसको कोई देख सकते है।
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तात्पर्य यह है की भगवान अथवा किसी भी देवी देवता की निंदा करने वालो के लिए कही कोई स्थान नही है।