कानपुर –

 

 

*12 रबीउल अव्वल के मुबारक मौके पर निकलेगा एशिया का सबसे बड़ा जुलूस-ए-मुहम्मदी, जुलूस, जमीअत उलमा-ए-शहर कानपुर ने जुलूस का राजनीतिकरण न हो इसके लिए सभी को बताए जुलूस के नियम*

 

 

 

पिछले 112 वर्षों से लगातार, पैग़म्बर हजरत मुहम्मद के यौमे विलादत के मुबारक 12 रबीउल अव्वल के मौके पर एशिया का सबसे बड़ा जुलूस-ए-मुहम्मदी जुलूस इस साल भी परंपरानुसार

सोमवार 16 सितंबर 2024 को, दोपहर एक बजे से जमीअत उलमा-ए-शहर कानपुर की कयादत में रजबी रोड परेड ग्राउंड से निकाला जाएगा । इसकी तैयारियां लगभग पूरी कर ली गयी है और इस साल यह जुलूस मुहम्मदी का 112वां जुलूस होगा ।

 

 

जमीअत उलमा उत्तर प्रदेश के नायब सदर मौलाना अमीनुल हक अब्दुल्लाह कासमी, जमीअत उलमा शहर कानपुर के सदर डॉ. हलीमुल्लाह खान, नायब सदर मौलाना नूरु‌द्दीन अहमद कासमी, मौलाना मोहम्मद अकरम जामई, सेक्रेटरी जुबैर अहमद फारुकी और हामिद अली अंसारी ने आज जमीअत बिल्डिंग में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में संयुक्त बयान में जानकारी देते हुए कहा कि 1913 में भारत की आज़ादी की जंग जब अपने शबाब पर थी तब यह जुलूस निकाला जाना शुरु हुआ था । इस जुलूस में कानपुर के मुसलमानों और हिंदुओं समेत सभी धर्मों के लोगों ने शामिल होकर आपसी भाईचारे और एकता का प्रदर्शन किया और अंग्रेजों की साजिशों को नाकाम किया था । यह जुलूस हमेशा से साम्प्रदायिकता के दुश्मनों के खिलाफ रहा है । पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद की शिक्षाओं का नतीजा है की जुलूस मुहम्मदी लगातार अमन, इंसानियत, मोहब्बत, भाईचारे और एकता का पैग़ाम देता रहा है ।

 

 

मौलाना अमीनुल हक़ अब्दुल्लाह कासमी ने जुलूस-ए-मुहम्मदी क में शामिल होने वाले सभी शहरवासियों, खास तौर पर मुसलमानों से अपील की है कि जुलूस के मार्ग में कुछ संकरे रास्ते हैं और जुलूस में हर साल शामिल होने वालों की संख्या में बहुत इजाफा हो रहा है, इसलिए सभी से गुजारिश है कि अपनी जगह से ही अनुशासित होकर शामिल हों जो संगठन जुलूस में शामिल होना चाहते हैं, वे परेड ग्राउंड पर फजर की नमाज के बाद पहुंचकर टोकन प्राप्त कर लें और वहीं से अपने नंबर के अनुसार जुलूस में शामिल हो ।

इसके अलावा उन्होंने कुछ खास हिदायतें भी दी जिनमे प्रमुख रूप से स्वच्छ और पवित्र कपड़े पहनकर जुलूस में शामिल होना कपड़ों पर इत्र लगाना और सिर पर टोपी पहनने के साथ ही, जुलूस के दौरान अल्लाह की हम्द, दुरुद, नात और सहाबा की प्रशंसा का पाठ पूरे ध्यान से करते रहे, पूरे रास्ते इस्लामी तहजीब और शालीनता का प्रदर्शन करें।

जुलूस के झंडों में लोहे की रॉड का उपयोग न करें, बल्कि बांस या लकड़ी के डंडों का इस्तेमाल करें, और उसकी लंबाई 8 फुट से

अधिक न रखें।

लाउडस्पीकर या साउंड सिस्टम की आवाज धीमी रखे ।

किसी भी तरह के राजनीतिक नारे, झंडे, बैनर या बैज का उपयोग न करें।

जुलूस के दौरान कोई ऐसा नारा न लगाएं या गीत न गाएं, जिससे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंच सके।

जो भी लोग संगठन जुलूस में तबर्रुक बांटते हैं, वे इसे फेंक कर न बांटें, बल्कि लोगों के हाथों में दें ताकि खाने की बर्बादी न हो और अल्लाह की नाराजगी का कारण न बने।

 

मौलाना अमीनुल हक अब्दुल्लाह कासमी और डॉ. हलीमुल्लाह खान ने अपनी इस अपील के माध्यम से सभी मुस्लिम भाइयों से अनुरोध किया है कि जुलूस-ए-मुहम्मदी के सम्मान और गरिमा को ध्यान में रखते हुए, पैगंबर मुहम्मद के अनुयायियों की जिम्मेदारी है कि वे जुलूस को शांति, इंसानियत और इस्लामी तहजीब का प्रतीक बनाएं और दुनिया को दिखा दें कि हम उस पैगंबर के अनुयायी हैं, जिसका संदेश मोहब्बत है, जिसकी दावत एकजुटता और भाईचारे की है। यही अल्लाह के नबी हजरत मुहम्मद की शिक्षाएं हैं और यही आपका सच्चा श्र‌द्धांजलि होगी ।

 

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