सीता अम्मा मन्दिर, श्रीलंका।
(जिस जगह से भगवान राम ने युद्ध जीतकर सीता जी को मुक्त कराया था, अयोध्या की तरफ पहला कदम बढ़ाया था।)
सीता अम्मा मंदिर में स्थानीय श्रद्धालु शाम सात बजे के बाद बहुत कम आते हैं। इसलिए इस वक्त पूरी तरह शांति है। रात की जगमग में दीयों की खास रोशनी दिखाई देती है। इधर भारत की चेतना में राम बसे हैं तो यहां श्रीलंका की स्मृतियों में सीता भी सुरक्षित हैं।
नुवारा एलिया के घुमावदार ऊंचे पहाड़ों की घनी हरियाली में ही कहीं अशोक वाटिका थी। ऐसे ही एक पहाड़ के कोने में सीता का मंदिर है। इस इलाके में कई मंदिर हैं, लेकिन वानर(बंदर) सिर्फ सीता मंदिर में ही नजर आए। मंदिर के प्रवेश द्वार से लेकर अंदर तक भगवान हनुमान की कई प्रतिमाएं हैं।
किवदंती है कि मंदिर के पीछे एक चट्टान पर हनुमान के चरण चिह्न भी हैं। एक खास किस्म का अशोक का पेड़ सीता निवास के इसी दायरे में मिलता है, जिसमें अप्रैल के महीने में लाल रंग के फूल आते हैं।
कथा है कि हनुमान संजीवनी बूटी के लिए जिस पहाड़ को उठा लाए थे, उसके साथ आई वनस्पतियां यहां फलीं-फूलीं। सिंहली आयुर्वेद में ये औषधियां आज भी वरदान मानी जाती हैं।
देवुरुम वेला नाम की जगह के बारे में माना जाता है कि यहीं सीता की अग्नि परीक्षा हुई थी। यहां की मिट्टी काली राख की परत जैसी है, जबकि देशभर में भूरी और हल्के लाल रंग की मिट्टी पाई जाती है।
रावण की लंका का दहन यहीं हुआ। मिट्टी की मोटी काली परत स्थानीय लोकमान्यता में इसी दहन कथा से जुड़ती है। सीता की स्मृतियों से जुड़ा यह स्थान अब एक पवित्र तीर्थ है।
भगवान ने वनवास के 12 साल चित्रकूट में बिताए थे। लगभग एक साल पंचवटी में रहे। यहीं से रावण ने सीता का हरण किया। यहीं से राम किष्किंधा की ओर गए, जहां हनुमान और सुग्रीव से उनकी मित्रता हुई। बालि वध हुआ।
रामेश्वरम् में जटायु के भाई संपाति ने ही सीता की तलाश में निकले वानरों को सीता का पता बताया था। फिर राम का रामेश्वरम् आना, सेतु बनाना और युद्ध के लिए लंका जाने के प्रसंग हैं। अनुमान है कि लंका में सीता जी 11 माह रहीं।
हर महीने श्रीलंका में पोएडे यानी पूजा का एक दिन तय है। सीता अम्मा टेंपल में तब सबसे ज्यादा चहलपहल होती है। सैकड़ों सैलानी भी यहां आते हैं।
जनवरी में पोंगल के एक महीने पहले से तमिल समाज के गांव-गांव में भजन गाए जाते हैं। 15 जनवरी को पूर्णाहुति पर शोभायात्रा निकलती है।
मान्यता है कि हनुमानजी ने यहीं अशोक वाटिका में मुद्रिका सीताजी को भेंट की थी।