भोजपुर में स्थित विश्वप्रसिद्ध शिवमन्दिर है , जिसके बारे में कुछ बुजुर्गों का कहना हैै कि इस मन्दिर का निर्माण द्वापर युग में पांडवों द्वारा माता कुंती की पूजा के लिए एक ही रात में किया गया था।

 

भोपाल से करीब 30कि.मी.की दूरी पर , भोजपुर गाॅंव वेत्रवती नदी के किनारे बसा हुआ है, इस गाँव से लगी हुई पहाड़ी पर एक विशाल प्राचीन शिवमन्दिर है l पौराणिक मत के अनुसार , यह द्वापर युग का निर्मित

मन्दिर हैै l माता कुन्ती द्वारा भगवान शिव की पूजा करने के लिए पाण्डवों ने इस मन्दिर के निर्माण का कार्य एक रात में ही पूरा करने का संकल्प लिया था , किन्तु इसकी छत का काम पूरा होने के पहले ही सुबह हो गई ,इसलिए इस मन्दिर का काम अधूरा ही रह गया , जो कि पूरा नहीं हो सका । इस कारण से ही यह मन्दिर आज तक अधूरा है। माता कुुंती के पिता का नाम भी राजाभोज था अत: इसका नाम भोजपुर पड़़ा l ऐतिहासिक मत के अनुसार जीर्णशीर्ण होने पर धार के राजा परमार वंशी राजाभोज ने इसका जीर्णोद्घार कराया। मान्यतानुसार इस मन्दिर का निर्माण कला , स्थापत्य और विद्या के महान संरक्षक मध्य-भारत के परमार वंशीय राजा भोजदेव ने करवाया इसी कारण से इस मन्दिर को भोजपुर मन्दिर या भोजेश्वर मन्दिर भी कहा जाता है तथा नगर का नाम भोजपुर है l इस मन्दिर के महंत पवन गिरी गोस्वामीजी के अनुसार , उनकी यह १९ वीं पीढ़़ी हैै जो इस मन्न्दिर की पूजा अर्चना कर रही हैै। प्राचीन काल का यह नगर ” उत्तर भारत का सोमनाथ ” कहा जाता है। मन्दिर का चबूतरा बहुत ऊँचा है,

चबूतरे पर स्थित गर्भगृह में एक बड़े से शिलाखण्ड पर पॉलिश किया हुआ विशाल शिवलिंग है , जिसकी ऊँचाई करीब 3•85 मी. है। इसे भारत के प्राचीन शिवमन्दिरों में पाये जाने वाले सबसे बड़े शिव लिंगों में से एक माना जाता है। मन्दिर के निकट के पत्थरों पर बने मन्दिर – योजना से संबद्ध नक्शों से इस बात का स्पष्ट पता चलता है कि विस्तृत चबूतरे पर ही मन्दिर के अन्य हिस्सों , मंडप , महामंडप तथा अंतराल बनाने की योजना थी, किन्तु मन्दिर पूर्ण रुपेण तैयार नहीं हो पाया। कुछ विद्धान इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत मानते हैं। इस मन्दिर का दरवाजा भी किसी हिंदू इमारत के दरवाजों में सबसे बड़ा है। चूँकि यह मन्दिर ऊँचा है , इतने प्राचीन मन्दिर के निर्माण के दौरान भारी पत्थरों को ऊपर ले जाने के लिए ढ़लाने बनाई गई थी। इसका प्रमाण भी यहाँ मिलता है।

एक ही पत्थर से निर्मित इतनी बड़़ी शिवलिंग अन्य कहीं नहीं दिखाई देती हैै। इस मन्दिर की ड्राइंंग समीप ही स्थित पहाड़़ी पर उभरी हुुई हैै जो आज भी दिखाई देती हैै। इससे ऐेसा प्रतीत होता हैै कि पूर्व में भी आज की तरह नक्शे बनाकर निर्माण कार्य किए जाते रहेे होंगे। भोजपुर मन्दिर में बहुत से अनोखे घटक भी देखने को मिलते हैं , इन अनोखे घटकों के अध्ययन करने के उपरांत एक शोधकर्त्ता कृष्ण देव का मत है कि संभवतः यह मन्दिर अन्त्येष्टि आदि क्रियाकर्म संबन्धी कार्यों से संबन्धित रहा होगा ; जैसा प्रायः श्मशान घाट आदि के निकटवर्त्ती आज भी देखे जा सकते हैं। शोध के अनुसार ज्ञात हुआ है कि कई

उच्चकुलीन व्यक्तियों की मृत्यु उपरांत उनके अवशेषों या अन्त्येष्टि स्थलों पर एक स्मारक रूपी मन्दिर बनवा दिया जाता था। इस प्रकार के मन्दिरों को स्वर्गारोहण-प्रासाद कहा जाता था।

किरीट मनकोडी के अनुमान के अनुसार राजा भोज ने इस मन्दिर को संभवतः अपने स्वर्गवासी पिता सिन्धुराज या ताऊ वाकपति मुंज हेतु बनवाया होगा , जिनकी मृत्यु शत्रु क्षेत्र में अपमानजनक रूप में हुई थी।

इस मन्दिर का इतिहास कुछ भी रहा हो किंतु आप जब भी भोपाल से इस मार्ग पर जा रहे हो तो भोजेश्वर मन्दिर के दर्शन अवश्य करें आप निश्चित रूप से इसे देखकर दांतो तले ऊंगली दबा

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