शास्त्रों में शनि को सूर्य का पुत्र और मृत्यु के देवता यम का भाई बताया गया है। शनि की विशेषताओं का बखान करते हुए प्राचीन ग्रंथ “श्री शनि महात्म्य” में लिखा गया है कि शनि देव का रंग काला है और उनका रूप सुन्दर है, उनकी जाति तैली है और वे काल-भैरव की उपासना करते हैं।

 

इतिहास-पुराणों में शनि की महिमा बिखरी पड़ी है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि गणेशजी का जन्म होने पर सभी ग्रह उनका दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुँचे। जैसे ही शनि ने आख़िर में भगवान गणेश के चेहरे पर नज़र डाली, उनका मस्तक कट कर धरती पर गिर गया। बाद में हाथी का सिर उनके धड़ पर लगाकर बालक गणेश को जीवित किया गया। शास्त्रों की यही बातें ज्योतिष में भी प्रतिबिम्बित होती हैं। ज्योतिष में शनि को ठण्डा ग्रह माना गया है, जो बीमारी, शोक और आलस्य का कारक है। लेकिन यदि शनि शुभ हो तो वह कर्म की दशा को लाभ की ओर मोड़ने वाला और ध्यान व मोक्ष प्रदान करने वाला है। साथ ही वह कैरियर को ऊँचाईयों पर ले जाता है। लोगों में शनि को लेकर कई तरह की भ्रांतियाँ हैं। बहुत-से लोगों का मानना है कि शनि देव का काम सिर्फ़ परेशानियाँ देना और लोगों के कामों में विघ्न पैदा करना ही है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार शनि देव परीक्षा लेने के लिए एक तरफ़ जहाँ बाधाएँ खड़ी करते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रसन्न होने पर वे सबसे बड़े हितैशी भी साबित होते हैं।

 

ज्योतिष में साढ़ेसाती और ढैया आदि दोषों का कारण शनि को माना गया है। जब वर्तमान समय में शनि किसी की चंद्र राशि में, उससे एक राशि पहले या बाद में स्थित हो तो उसे साढ़ेसाती कहते हैं। कहते हैं कि साढ़ेसाती के दौरान भाग्य अस्त हो जाता है। लेकिन शनि को सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाला ग्रह माना जाता है। यदि शनि की नियमित आराधना की जाए और तिल, तैल व काली चीज़ों का दान किया जाए, तो शनि देव की अनुकम्पा पाने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगता।

 

शास्त्रों के मतानुसार हनुमानजी भक्तों को शनि के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं। रामायण के एक आख्यान के मुताबिक़ हनुमानजी ने शनि को रावण की क़ैद से छुड़ाया था और शनि देव ने उन्हें वचन दिया था कि जो भी हनुमानजी की उपासना करेगा, शनि देव सभी मुश्किलों से उसकी रक्षा करेंगे।

 

भारत में शनि देव के कई विख्यात मन्दिर हैं। ऐसे ही मंदिरों में से एक है मुम्बई के पास देवनार में स्थित “शनि देवालयम”। ऐसी मान्यता है कि जो भी यहाँ शनि देव को तैल चढ़ाता है उसे साढ़े साती से तुरंत छुटकारा मिल जाता है। शनि देव का सबसे प्राचीन मंदिर शनिशेंगणापुर में माना जाता है। कहते हैं कि कलियुग की शुरुआत में स्वयं शनिदेव यहाँ आकर रहने लगे थे। यहाँ जो भी भक्त श्रद्धा से शनि देव की उपासना करता है, वे उसे मनोवांछित फल देते हैं।

♥ ♥बोलो पवन पुत्र हनुमान की जय

बोलो शनि देव महाराज की जय..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *