*रानी अहिल्याबाई बाई होल्कर ने किया न्याय*

एक बार मध्यप्रदेश के इन्दौर नगर में एक रास्ते से महारानी देवी अहिल्यावाई होल्कर के पुत्र मालोजीराव का रथ निकला तो उनके रास्ते में हाल ही की जनी गाय का एक बछड़ा सामने आ गया।

गाय अपने बछड़े को बचाने दौड़ी तब तक मालोरावजी का रथ गाय के बछड़े को कुचलता हुआ आगे बढ़ गया।

किसी ने उस बछड़े की परवाह नहीं की। गाय बछड़े के निधन से स्तब्ध व आहत होकर बछड़े के पास ही सड़क पर बैठ गई।

 

थोड़ी देर बाद अहिल्यावाई वहाँ से गुजरीं। अहिल्यावाई ने गाय को और उसके पास पड़े मृत बछड़े को देखकर घटनाक्रम के बारे में पता किया।

 

सारा घटनाक्रम जानने पर

अहिल्याबाई ने दरबार में मालोजी की पत्नी मेनावाई से पूछा ~~~

 

“यदि कोई व्यक्ति किसी माँ के सामने ही उसके बेटे की हत्या कर दे, तो उसे क्या दंड मिलना चाहिए?”मालोजी की पत्नी ने जवाब दिया ~~~”उसे प्राण दंड मिलना चाहिए।”

 

देवी अहिल्यावाई ने मालोराव को हाथ-पैर बाँध कर मार्ग पर डालने के लिए कहा और फिर उन्होंने आदेश दिया मालोजी को मृत्यु दंड रथ से टकराकर दिया जाए।

यह कार्य कोई भी सारथी करने को तैयार न था।

देवी अहिल्याबाई न्यायप्रिय थी। अत: वे स्वयं ही माँ होते हुए भी इस कार्य को करने के लिए भी रथ पर सवार हो गईं।

 

वे रथ को लेकर आगे बढ़ी ही थीं कि तभी एक अप्रत्याशित घटना घटी।

वही गाय फिर रथ के सामने आकर खड़ी हो गई, उसे जितनी बार हटाया जाता उतनी बार पुन: अहिल्याबाई के रथ के सामने आकर खड़ी हो जाती।

 

यह दृश्य देखकर मंत्री परिषद् ने देवी अहिल्यावाई से मालोजी को क्षमा करने की प्रार्थना की, जिसका आधार उस गाय का व्यवहार बना।

उस तरह गाय ने स्वयं पीड़ित होते हुए भी मालोजी को द्रौपदी की तरह क्षमा करके उनके जीवन की रक्षा की।

 

इन्दौर में जिस जगह यह घटना घटी थी, वह स्थान आज भी गाय के आड़ा होने के कारण ‘आड़ा बाजार’ के नाम से जाना जाता है।

 

उसी स्थान पर गाय ने अड़कर दूसरे की रक्षा की थी।

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