कौन जिम्मेदारी लेगा करोंड़ों रुपयों की लागत से लगाये गये पौधों की हत्या का
जी हाँ, आज हम बात कर रहे हैं कानपुर स्मार्ट सिटी के लापरवाह, जुमलेबाज जिला प्रशासन की और धृतराष्ट्र की भूमिका निभा रहे जनप्रतिनिधियों की, जिनकी लापरवाही की भेंट करोड़ों रुपयों की लागत वाले लाखों पौधे चढ़ गये अर्थात लाखों पौधों की हत्या कर दी गई ! वहीं जिस तरह से सुन्दर सुन्दर पौधों का सहारा लेकर दीवारों या गलियारों को सजाने – संवारने की योजना तैयार की गई, उस तरह की योजना तैयार करने वालों से जवाब लेना तो बनता ही है कि उन्हें मूर्खता की किस श्रेणी में रखा जाये ?
गौर तलब हो कि कानपुर स्मार्ट सिटी में गलियारों को सजाने व संवारने के लिये सरकारी भवनों की दीवारों का सहारा लिया गया। कहीं पेंटिग की गई तो कहीं पर भवनों की दीवारों पर प्लास्टिक के छोटे-छोटे गमले चिपका दिये गये और उन गमलों में पौधे रोपित कर दिये गये और अपनी अपनी पीठ थपथपाने वालों द्वारा कहा गया कि अब जल्दी ही बड़े मनमोहक नजारे दिखेंगे।
समय गुजरा, परिणाम सामने आ गया कि नजारे भले ही मनमोहक नहीं दिख पाये लेकिन लाखों पौधों की हत्या कर दी गई और करोड़ों रुपयों की भेंट स्मार्ट सिटी के नाम पर न्योछावर कर दी गई। इसकी अगर हकीकत देखना हो तो मरियमपुर अस्पताल के ठीक सामने व लाल इमली चौराहा के पास लाल इमली भवन से सटी दीवार सहित अनेक स्थानों का भौतिक परीक्षण कर लिया जाये। अधिकर स्थानों पर दीवारों में चिपकाये गये छोटे – छोटे गमलों में लगे अधिकतर पौधे लापरवाही की भेंट चढ़ गये हैं। अधिकतर पौधे मर गये हैं, बचे खुचे पौधे सूखने की कगार पर हैं। सुन्दर – सुन्दर पौधों के सूख जाने की जिम्मेदार कौन लेगा ?
वहीं सवाल यह भी उठता है दीवारों पर गमले लगाने की युक्ति का सुझाव किसके मन में आया ? सुझाव देने वाले ने यह क्यों नहीं सोंचा कि दीवार पर गमले लटकाने / चिपकाने के बाद उन्हें हर रोज पानी की जरूरत पड़ेगी और जब हर रोज पानी डाला जायेगा तो इसके कारण से भवनों की दीवारों को क्षति पहुंच सकती है ? निष्कर्ष यह निकलता है दीवारों पर गमले चिपकाने की योजना तैयार करना ही मूखतापूर्ण कार्य है !
अब आप सवाल कर सकते हैं कि मैंने शहर के जन प्रतिनिधियों को ‘धृतराष्ट्र’ की संज्ञा क्यों दी? तो इसका जवाब है कि शहर के जनप्रतिनिधि, प्रायः इन्हीं चौराहों से गुजरते हैं लेकिन उन्हें ये नजारे क्यों नहीं दिखते, धृतराष्ट्र को भी कुछ नहीं दिखता था ?
सवाल यह भी है कि शहर के जनप्रतिनिधि, अपनी आँखों पर कौन सा चश्मा लगा कर चलते हैं जिसके कारण उन्हें यह सब नहीं दिखता ?
सवाल यह भी है कि क्या जनप्रतिनिधियों की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वो जिला प्रशासन से यह सवाल पूंछें कि लाखों रुपयों की लागत से लगाये गये लाखों पौधे किसकी लापरवाही से सूख गये ?
सवाल यह भी है कि क्या जनप्रतिनिधियों को सिर्फ अपने कमीशन से ही मतलब है, अगर ऐसा नहीं तो उन्होंने कभी कोई शिकायत या विरोध ‘जिम्मेदारों’ से क्यों नहीं जताया

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