आज है बसंत उत्सव पंचमी तिथि के दिन भारत के उतर प्रदेश में भगवान श्री कृष्ण की जन्म स्थली मथुरा में ऋषि दुर्वासा के मंदिर में एक विशेष मेले का आयोजन किया जाता है। इस दिन इस स्थान के सभी मुख्य मंदिर विशेष रुप से सजे होते है. मंदिरों में देवी-देवताओं का श्रृंगार देखते ही बनता है. श्रृंगार में पीले रंग के फूलों का विशेष रुप से प्रयोग किया जाता है. बसंती रंगों से सजे राधा-कृ्ष्ण मनमोह लेते है. इस दिन यहां श्रद्वालुओं कि भीड उमडती है।

 

मंदिरों में देवी -देवताओं को लगाये जाने वाले भोग भी बसंती रंग के ही होते है. बसंत के राग गाये-बजाये जाते है. जहां देखों प्रकृति में बसंती रंग लहलहा रहा होता है. यहां होळी भी बसन्त पंचमी से ही शुरु हो जाती है. होली ब्रज का परम्परागत पर्व है. जिसका प्रारम्भ बंसत पंचमी से हो जाता है।

 

बाबा वैद्धनाथ की नगरी देवघर को मेलों का शहर कहा जाता है. यहां वर्ष में कई मेलों का आयोजन किया जाता है. भगवान शंकर की नगरी होने के कारण यहां में एक विशेष मेला लगता है. महाशिवरात्रि पर्व पर भी यहां मेले का आयोजन किया जाता है. देश-विदेश से आने वाले श्रद्वालुओं के कारण यह धाम भक्तों से सजा रहता है

 

संगरूर का गुदडी वाला शिव मंदिर मेला

संगरूर जिले में धूरी नामक स्थान पर बाबा बंसरी वाला और गुदडी वाला शिव मंदिर में वसंत पंचमी पर्व के मौके पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. मेले में झूलों और खान-पान के आयोजन के साथ साथ इस मंदिर मे दर्शनों के लिये भक्तों की भारी भीड लगी रहती है. लोग श्रद्वा और विश्वास के साथ यहां दर्शन करते है. यहां की मान्यता है, कि यहां पर कोई भी भक्त निराश नहीं होता, सब के मन की मुराद पूरी होती है।

 

बाबा वैद्धनाथ का तीलकोत्सव

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बंसत पंचमी के दिन बाबा वैद्धनाथ में तिलकोत्सव मनाया जाता है. बाबा का तिलक उत्सव मेले के रुप में आयोजित किया जाता है. इस स्थान पर इस दिन से ही कांवरिये आने शुरु हो जाते है. सैंकडों की संख्या में पैरों में घूंघरु बांधे ये कांवरिये मेले की शोभा दुगनी कर देते है. बंसत पंचमी मेला अति प्राचीन है. इस मेले में न केवल शिवभक्त ही आते है. बल्कि पार्वती के मायके से भी भक्त यहां पहुंचते है. और बाबा का तिलक अनुष्ठान कर भगवान शिव को विवाह का न्यौता देते है. इसके बाद यह विवाह महाशिवरात्रि के दिन संम्पन्न किया जाता है. इस अवसर पर सारा क्षेत्र बमबम की गूंज से संगीतमय हो रहा होता है।

 

बसन्त पर्व

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बसन्त ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा कहा जाता है. इस समय प्रकृ्ति अपने निखार पर होती है. चारों और फूल खिलकर, खुशबू और रंग की वर्षा कर रहे होते है. धरती, जल, वायु और आकाश और अग्नि सभी पंच तत्व मोहक रुप में होते है. सर्दी कि अधिकता के कारण जो पक्षी और जन्तु अपने घरों में छुपे होते है, वे भी बाहर निकल कर आकाश में चहकने लगते है. नवजीवन का आगमन इसी ऋतु में होता है. खेतों में पीली-पीली सरसों अपने पीले-पीले फूलों से किसान को हर्षित करती है।

 

जगह-जगह सांस्कृ्तिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है. जिसमें युवक भंगडा और युवतियां गिद्धा, बोलियां आदि पेश करती है. बसंत पंचमी मौसम में बदलाव का प्रतीक है. प्राकृ्तिक हरियाली पर रौनक का प्रारम्भ होने का दिन होता है. यह भारत की संस्कृ्ति का अभिन्न अंग है।

 

भगवान श्री कृ्ष्ण ने गीता के दसवें अध्याय में यह कहा है, कि छ: ऋतुओं में से वसंत ऋतु में हूँ. वसंत मेरा रुप है. यह ऋतु मुझे सबसे अधिक प्रिय है. यही कारण है, भगवान श्रीकृ्ष्ण की जन्म नगरी मथुरा और भगवान श्रीकृष्ण से जुडे अन्य स्थलों में बसंत पंचमी का पर्व विशेष रुप से मनाया जाता है. इसके अलावा अन्य जो पांच ऋतु है, वह इस प्रकार है. ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर है. बसंत पंचमी आनंद और हर्ष का पर्व है. इस अवसर पर शीत ऋतु लगभग जा रही होती है, और ग्रीष्म ऋतु नये फूलों के साथ सज कर आ रही होती है. सर्दी की समाप्ति होने के कारण सभी और चेतना और सक्रियता का भाव होता है।

 

प्राचीन समय में बसंत पचंमी के दिन लोग मलमल के कपडों को वसंती रंग में रंग कर धारण करते थें. कवि भी इस मौसम में प्रसन्न होकर अपनी लेखनी उठा लेते है. बसंत पंचमी पर्व पर लोग पीले रंग के चावल बनाकर अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ खूब आनंद से खाते हैं

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