ऐसा माना जाता है कि राजा दशरथ के उज्जैन में पिण्डदान के दौरान भगवान श्री रामचन्द्र जी ने यहां आकर पूजा अर्चना की थी।

उज्जैन से करीब 6 किलोमीटर दूर भगवान श्री गणेश के तीन रूप एक साथ विराजमान है, जो चितांमण गणेश, इच्छामण गणेश और सिद्धिविनायक के रूप में जाने जाते है। श्री चिंताहरण गणेश जी की ऐसी अद्भूत और स्वयंभू अलोकिक प्रतिमा देश में शायद ही कहीं होगी। भक्त की इच्छा पूर्ण करने वाले, इच्छामण, सिद्धि देने वाले सिद्धिविनायक के साथ समस्त चिंता को दूर करने वाले चिंतामण गेणेश जी विराजमान है। इनका श्रृंगार सिंदूर से किया जाता है। श्रृंगार से पहले दूध और जल से इनका अभिषेक किया जाता है और विशेष रूप से मोदक एवं मोतीचूर के लड्डू का भोग इन्हें लगाया जाता है जो इन्हें अत्यन्त प्रिय है।

ऐसा माना जाता है कि राजा दशरथ के उज्जैन में पिण्डदान के दौरान भगवान श्री रामचन्द्र जी ने यहां आकर पूजा अर्चना की थी।

इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप महारानी अहिल्याबाई द्वारा करीब 250 वर्ष पूर्व बनाया गया था। इससे भी पूर्व परमार काल में भी इस मंदिर का जिर्णोद्धार हो चुका है। यह मंदिर जिन खंबों पर टिका हुआ है वह परमार कालीन हैं।

यहां पर बुधवार के दिन भक्तों को विशेष रूप से तांता लगता है। इनको तीन पत्तों वाली दूब भक्तों द्वारा चढाई जाती है। हर त्यौहार और उत्सव पर तरह-तरह के श्रृंगार विशेष रूप से किये जाते है।चिंतामण गणेश की आरती दिन में तीन बार होती है प्रातः कालिन आरती, संध्या भोग आरती, रात्री शयन आरती। आरती में ढोल, डमाके और ताशों की गूंज ऐसी होती है कि आरती में शामिल हर कोई भक्त मग्न हो जाता है।यहां पर भक्त, गणेश जी के दर्शन कर मंदिर के पीछे उल्टा स्वास्तिक बनाकर मनोकामना मांगते है और जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वह पुनः दर्शन करने आते है।

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