कोरोना काल में स्टेरायड्स के प्रयोग को लेकर जून, 2020 में रिकवरी ट्रायल सामने आया था। स्टेरायड्स से इस बीमारी में जान जाने का खतरा कम होता है। लेकिन इनका इस्तेमाल किसी दोधारी तलवार जैसा है। इनका इस्तेमाल करते समय बहुत सतर्क रहने की जरूरत होती है। एक बार स्टेरायड लेना शुरू करने के बाद सही अंतराल पर सही डोज लेना जरूरी है। शेर ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (स्किम्स) के पल्मनरी एंड इंटर्नल मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. सैयद मुदस्सिर कादरी का कहना है कि इसमें किसी तरह की चूक फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है।
कब लेना चाहिए स्टेरायड: कोरोना की दूसरी लहर में कुछ मरीजों में लगातार बुखार बने रहने की शिकायत देखी गई है। ऐसे मरीजों को सांस लेने में परेशानी होती है। इन्हें डेक्सामेथासोन देने से बहुत फायदा देखा गया है। यह स्टेरायड फेफड़ों को होने वाले नुकसान से बचाता है। इसलिए पहले हफ्ते लगातार बुखार में रहे मरीजों को स्टेरायड देने की शुरुआत की जा सकती है। इसी तरह हाइपोक्सिया यानी शरीर में आक्सीजन की मात्रा कम होना भी स्टेरायड का इस्तेमाल शुरू करने का संकेत है।इन बातों का रखें ध्यान
शुरुआत के 10 दिनों में ही हमें ऐसे मरीजों की पहचान कर लेनी चाहिए, जिन्हें स्टेरायड की डोज दी जा सकती है। इसके लिए शरीर में आक्सीजन की मात्रा, इन्फ्लेमेटरी मार्कर और लगातार बुखार पर नजर रखना जरूरी है। शुरू में ही स्टेरायड देने से मरीज को नुकसान पहुंच सकता है। स्टेरायड देने की शुरुआत संक्रमण के पहले पांच दिन के बाद की जानी चाहिए। अगर मरीज में गंभीर हाइपोक्सिया या हाई साइटोकिन के लक्षण न हों तो पहले 10 दिन डेक्सामेथासोन का सेवन ही सही चुनाव है। स्टेरायड का प्रकार और डोज बदलने का फैसला डाक्टर से पूछकर ही करना चाहिए। एक से ज्यादा प्रकार के स्टेरायड का एक साथ सेवन नहीं करना चाहिए। हालांकि डेक्सामेथासोन से फायदा नहीं होने पर अन्य स्टेरायड का विकल्प रहता है।