कानपुर। उत्तर प्रदेश में कई मदरसे केवल सरकारी धन के गबन और धोखाधड़ी का साधन बन गये हैं। अनुदानित मदरसे गैरकानूनी ढंग से स्टाफ में परिवारीजनों की ही भर्ती करके करोड़ों सरकारी ग्रांट गबन के गंभीर आरोप से घिरे हैं। आजमगढ़ और मिर्जापुर के दर्जनों मदरसों की एसआईटी जांच में ऐसी धोखाधड़ी और गबन साबित भी हुई है, सैकड़ों मदरसे तो केवल कागजों पर चलते मिले हैं। मदरसा बोर्ड और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के शीर्ष अधिकारी भी जांच के लपेटे में आ गये हैं। उल्लेखनीय है कि कानपुर नगर जिले में चल रहे दो दर्जन अनुदानित मदरसों का भी कथित तौर पर यही हाल है। कानपुर नगर की बिल्हौर तहसील में स्थित मदरसा ‘अल जमीयतुल अरबिया गौसिया कादरिया सकूरिया’ पर भी हैं ऐसी ही गंभीर अनियमितताओं के आरोप हैं। इतना ही नहीं, इस मदरसे के संचालकों को दबे शब्दों में मदरसा माफिया बताया जाता है, जो आसपास के कई जिलों में चल रहे अनुदानित मदरसों के संचालन में गहरा दखल रखते हैं। जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी कार्यालय मदरसा संचालकों के गबन और धांधलियों को ढकने का काम करता है। वहीं मदरसों को चलाने वाली सोसाइटियों में हेराफेरी पर डिप्टी रजिस्ट्ररा सोसाइटीज ऑफिस भी साथ देता सा दिखता है। इसलिये कानपुर के मदरसों में दशकों से चल रहे सरकारी धन के कथित गबन और हेराफेरी पर तुरंत लगाम लगाने, करदाताओं से मिले सरकारी धन को लुटने से बचाने के लिये यहां भी एसआईटी जांच की आवश्यकता है।
बिल्हौर तहसील स्थित मदरसा ‘अल जमीयतुल अरबिया गौसिया कादरिया सकूरिया’ में गर्ल्स और ब्याॅज के अलग-अलग मदरसे हैं। बिल्हौर की ‘जिया ए बरकात एजूकेशनल सोसाइटी’ द्वारा संचालित इन मदरसों में प्राईमरी से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट तक के पाठ्यक्रम हैं। दोनों मदरसों में 15-15, यानि कुल तीस अनुदानित शिक्षक पद हैं। इन सभी 30 शिक्षक पदों में से 26 पर मदरसा प्रिंसिपल मो. अनीसुल रहमान ने अपने ही सगे संबंधियों को नियुक्त कर रखा है। जहां सकूरिया गर्ल्स मदरसे में उनकी पत्नी प्रिंसिपल हैं, वहीं बेटियां, भतीजियां, साली व अन्य करीबी रिश्तेदार आदि शिक्षक हैं। क्लर्क पदों पर भी रिश्तेदार हैं। वहीं मुख्य मदरसे में प्रिंसिपल के बेटे सलमान आरिफ और सुल्तान आरिफ शिक्षक हैं, तो वहीं दामाद गुलाम हुसैन भी यहीं टीचर हैं। इनमें से कई के मार्कशीटें और सर्टिफिकेट तो इसी मदरसे के या फिर प्रिंसिपल अनीसुल रहमान के दखल वाले मदरसों के हैं। इनपर कई बार उंगलियां उठ चुकी हैं। बाकी पदों पर भी साले, भतीजे आदि काबिज हैं। प्रत्येक शिक्षक पद पर सरकार वेतन के रूप में 50 से 80 हजार रूपये दे रही है। मदरसे को यहां फैमली बिजनेस बनाकर अनुदान हड़पा जा रहा है। हैरत की बात ये है कि पूछने पर प्रिंसिपल ये आरोप सहर्ष स्वीकरते हैं। कहते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व मामला कोर्ट में जाने के बाद मदरसा बोर्ड रजिस्ट्रार को जांच दी गई थी। उन्होंने आदेश जारी करके क्लीन चिट दे दी थी। यहां पाठकों को बता दें कि प्रिंसिपल उस रजिस्ट्रार द्वारा क्लीन चिट दिये जाने की बात कर रहे हैं जो खुद आजमगढ़ व मिर्जापुर के मदरसों में करोड़ों घोटाले के आरोप में एसआईटी जांच के लपेटे में हैं, जल्द जिनपर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी यानि डीएमओ का कार्यभार भी संभाल रहीं डिप्टी डायरेक्टर प्रियंका अवस्थी ने संवाददाता से सीधे तौर बिल्हौर के मदरसा सकूूरिया के बारे में कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया। उल्टे गैर जिम्मेदाराना बयान देते हुये कहा कि ‘सकूरिया प्रबंधन ने अपने घर वालों को शिक्षक पद पर भर्ती किया है तो किसी न किसी नियम के अनुसार ही किया होगा..!’ ये पूछने पर कि पाल्यों को सरकारी शिक्षक बना देने का नियम कब आया..? इसपर डिप्टी डायरेक्टर कोई जवाब नहीं देतीं। वहीं कार्यवाहक डीएमओ प्रियंका अवस्थी सीधे-सीधे अपने कार्यालय द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपी मदरसा सकूरिया बिल्हौर की कोई भी सूचना देने से साफ इनकार कर देती हैं। कहती हैं कि जो भी जानकारी चाहिये, वो आरटीआई लगाकर ले लें, वो कोइ सूचना नहीं देंगी।
वहीं मदरसा सकूरिया को चलाने वाली संस्था ‘जिया ए बरकात एजूकेशनल सोसाइटी’ में भी सोसाइटीज एक्ट के विपरीत जाकर हेरफेर किये जाने का संदेह व आरोप लगे। इसपर हमने उपनिबंधक सोसाइटीज एवं चिट्स से संपर्क कर जानकारी मांगी। उपनिबंधक अखिलेश चंद्र मौर्य ने पहले तो बिना फाइल नंबर के ‘जिया ए बरकात एजूकेशनल सोसाइटी’ की फाइल ढूंढने में असमर्थता जाहिर की। फिर फाइल ढूंढने को चंद दिनों का समय मांगा। कहा जा रहा है कि इस कार्यालय के चंद बाबू मदरसा सकूरिया के संचालक मंडल से नजदीकी रखते हैं। शायद इसलिये हमारे कार्यालय पुहंचने के दूसरे ही दिन मदरसा सकूरिया के प्रिंसिपल उपनिबंधक कार्यालय पहुंच गये।