श्री राधा रानी की अमृतहस्ता वरदान प्राप्ति लीला❣️
ऋषि की आंखों में आंसू आ जाते हैं । अत्यंत प्रसन्न हो वो राधारानी को पास बुलाते हैं । और बड़े प्रेम से उनके सिर पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं- “बेटी आज से तुम ‘अमृतहस्ता’ हुई ।
“जगत की स्वामिनी है श्री जी, उनको किसी के आशिर्बाद की ज़रूरत नहीं फिर भी देव मर्यादा से आशीर्वाद स्वीकार किया ।
दुर्वासा ऋषि बोले – राधा रानी आप जो बनायोगी वो अमृत के भी अधिक स्वादिस्ट हो जायेगा ।
जो भी उस दिव्य प्रसाद को पायेगा उसके यश, आयु में वृद्धि होगी उस पर कोई विपत्ति नहीं आएगी ,उसकी कीर्ति त्रिलोकी में होगी । ये बात व्रज में फ़ैल गयी आग की तरह की ऋषि दुर्वासा ने राधा जी को आशीर्वाद दिया ।
जब मैया यशोदा को जब ये पता चला तो वो तुरंत मैया कीर्तिदा के पास गयी और विनती की आप राधा रानी को रोज हमारे घर नन्द भवन में भोजन बनाने के लिए भेज दिया करे ।
वे दुर्वासा ऋषि के आशिर्बाद से अमृत हस्ता हो गयी है और कंस मेरे पुत्र कृष्ण के अनिष्ठ के लिए हर रोज अनेक असुर भेजता है ।
हमारा मन बहुत चिंतित होता है आपकी बेटी के हाथो से बना हुआ प्रसाद पायेगा तो उनका अनिष्ठ नहीं हो उसकी बल, बुद्धि, आयु में वृद्धि होगी ।
फिर कीर्तिजा मैय्या ने श्री राधा रानी जी से कहा – आप यसोदा मैया की इच्छा पूर्ति के लिए प्रति दिन नन्द गाँव जाकर भोजन बनाया करो ।
उनकी आज्ञा पाकर श्री राधा रानी रोज कृष्ण के भोजन प्रसादी बनाने के लिए नन्द गाँव जाने लगीं