कानपुर के डॉ. आंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर हैंडीकैप्ड संस्थान, एआईटीएच के इरादों के मजबूत दिव्यांग छात्रों ने अच्छे पैकेज पर नौकरी पाकर सफलता हासिल की है। नाक से मोबाइल, एक हाथ से लैपटॉप चलाने वाले और पूरी तरह से व्हीलचेयर पर निर्भर कंप्यूटर साइंस विभाग के चौथे साल के छात्र अनंत वैश्य को आठ लाख का पैकेज मिला है। इसी ट्रेड के छात्र लक्ष्य को भी आठ लाख और मो. यामीन को छह लाख की नौकरी मिली है।अनंत वैश्य आर्थोपेडिक मल्टीप्लेक्स कंजनाइटा नाम की बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी में मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर हो जाती हैं और हड्डियां अकड़ जाती हैं। अनंत को पीडब्लूसी कंपनी ने सॉफ्टवेयर डेवलपर की नौकरी दी है। कैंट के रहने वाले अनंत बचपन में इस बीमारी की चपेट में आ गए थे। उनका पूरा शरीर व्हीलचेयर पर है। केवल बाएं हाथ की अंगुलियां चलती हैं, जिससे वह लैपटॉप चलाते हैं। मोबाइल चलाने के लिए नाक का इस्तेमाल करते हैं।
रोजमर्रा के काम के लिए पूरी तरह से घर वालों पर निर्भर हैं। इन सबके बावजूद आत्मविश्वास कूट-कूटकर भरा है। ओपन स्कूल से 12वीं करने के बाद एआईटीएच में दाखिला लिया। अनंत कहते हैं कि बचपन से ही उन्हें कंप्यूटर का शौक था। इसी वजह से कंप्यूटर साइंस में दाखिला लिया। अपने हौसले के कारण ही अनंत संस्थान में मोटीवेशनल कोच बनकर उभरे हैं। विकलांग साथियों को टिप्स देते हैं। अनंत के पिता अजय कश्यप व्यापारी और मां ज्योति कश्यप गृहिणी हैं। कहते हैं उनकी सफलता के पीछे पिता का हाथ है।कंप्यूटर साइंस के छात्र रहे लखनऊ के लक्ष्य मिश्रा का चयन भी पीडब्लूसी कंपनी में आठ लाख के पैकेज पर हुआ है। लक्ष्य सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित हैं। हालांकि वे अपने सारे काम खुद ही करते हैं। लक्ष्य बताते हैं कि जब वे पांच साल के थे तो पिता की ब्लड कैंसर से मौत हो गई थी। बचपन में मां कुमोदिनी मिश्रा और बहन आयुषी मिश्रा के अलावा दोस्तों, सोसाइटी के लोगों ने काफी मदद की है। लक्ष्य कहते हैं भगवान ने जो दिया, उससे कोई शिकायत नहीं। पढ़ाई, जॉब पर फोकस करके आगे बढ़ना चाहता हूं।कंप्यूटर साइंस के छात्र और बरेली के बेहड़ी तहसील में रहने वाले मोहम्मद यामीन को सोसाइटी जनरल में छह लाख का पैकेज मिला है। पैर का एक अंगूठा और अंगुली गल के कट चुकी है, लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं। आर्थिक रूप से कमजोर मोहम्मद यामीन ने पढ़ाई कभी नहीं छोड़ी। पिता साजिद हुसैन की गांव में नाई की दुकान है और मां भूरी गृहिणी हैं। यामीन कहते हैं कि कई बार ऐसे मौके आए जब बीमारी और आर्थिक दिक्कतों ने तोड़कर रख दिया था, लेकिन एक फिर से आत्मविश्वास जगाया और जवाहर नवोदय स्कूल में दाखिला लिया।
डॉ. आंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर हैंडीकैप्ड के
यामीन परिवार में सबसे बड़े हैं। उनके पांच छोटे भाई बहन हैं। यामीन कहते हैं कि नौकरी से अपने परिवार की दिक्कतों को दूर करूंगा। भाई बहनों को अच्छी शिक्षा दूंगा, ताकि वह भी पढक़र आगे बढ़ें। संस्थान के प्लेसमेंट अधिकारी रोहित शर्मा और मीडिया इंचार्ज डॉ. मनीष सिंह राजपूत ने बताया कि 12 दिव्यांग छात्रों में आठ को नौकरी मिल गई है। अभी कुछ कंपनियों का आना बाकी है। हर साल की तरह इस बार भी शत प्रतिशत प्लेसमेंट होगा

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