प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र को संबोधित कर रहे हैं। 15 महीने के कोरोना काल में यह उनका 9वां संदेश है। इसमें मोदी ने वैक्सीनेशन पर बड़ा ऐलान किया। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों को मुफ्त वैक्सीन दी जाएगी। उन्हें इसके लिए कुछ खर्च नहीं करना होगा।
मोदी ने कहा कि कोरोना की दूसरी वेव और इससे हमारी लड़ाई जारी है। दुनिया के अनेक देशों की तरह भारत भी इस लड़ाई के दौरान बड़ी पीड़ा से गुजरा है। हममें से कई लोगों ने अपने परिजनों और परिचितों को खोया है। ऐसे सभी परिवारों के साथ मेरी पूरी संवेदनाएं हैं। बीते 100 साल में आई ये सबसे बड़ी महामारी है, त्रासदी है। इस तरह की महामारी आधुनिक विश्व ने न देखी थी और न अनुभव की थी।
मोदी ने कहा कि इतनी बड़ी वैश्विक महामारी से हमारा देश कई मोर्चों पर एक साथ लड़ रहा है। कोविड अस्पताल बनाने से लेकर आईसीयू बेड्स की संख्या बढ़ाना, वेंटिलेटर बनाने से लेकर टेस्टिंग लैब का नेटवर्क तैयार करना हो। बीते सवा साल में ही देश में एक नया हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया है। दूसरी लहर के मिस-मैनेजमेंट और केंद्र की भूमिका पर सवाल उठने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्यों की मांग पर ही उन्हें कोरोना नियंत्रण और वैक्सीनेशन के अधिकार दिए गए
मोदी के संबोधन की खास बातें…
इस लड़ाई में सबसे प्रभावी हथियार कोविड प्रोटोकॉल
अप्रैल और मई के महीने में ऑक्सीजन की डिमांड अकल्पनीय रूप से बढ़ गई। भारत में कभी भी इतनी मात्रा में इतनी ऑक्सीजन की जरूरत महसूस नहीं की गई। इस जरूरत को पूरा करने केलिए युद्ध स्तर पर काम किया गया। सरकार के सभी तंत्र लगे। ऑक्सीजन रेल, एयरफोर्स, नौसेना को लगाया गया। लिक्विड ऑक्सीजन के प्रोडक्शन में 10 गुना ज्यादा बढ़ोतरी बहुत कम समय में हो गई। दुनिया के हर कोने से जो उपलब्ध हो सकता था, उसे लाया गया। जरूरी दवाओं के प्रोडक्शन को कई गुना बढ़ाया गया। विदेशों में जहां भी दवाइयां उपलब्ध हों, वहां से उन्हें लाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी गई। कोरोना जैसे अदृश्य और रूप बदलने वाले दुश्मन के खिलाफ लड़ाई में सबसे प्रभावी हथियार कोविड प्रोटोकॉल है।
वैक्सीन सुरक्षा कवच की तरह
लड़ाई में वैक्सीन सुरक्षा कवच की तरह है। पूरी दुनिया में वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां गिनी-चुनी हैं। अभी हमारे पास भारत में बनी वैक्सीन नहीं होती तो भारत जैसे विशाल देश में क्या होता। पिछले 50-60 साल का इतिहास देखेंगे तो पता चलेगा कि भारत को विदेशों से वैक्सीन हासिल करने में दशकों लग जाते थे। वैक्सीन का काम पूरा हो जाता था, तब भी हमारे देश में वैक्सीनेशन का काम शुरू नहीं हो पाता था। पोलियो, स्मॉल पॉक्स, हैपेटाइटिस बी की वैक्सीन के लिए देशवासियों ने दशकों तक इंतजार किया था।
वैक्सीनेशन के लिए मिशन मोड में काम
2014 में देशवासियों ने हमें सेवा का अवसर दिया तो भारत में वैक्सीनेशन का कवरेज सिर्फ 60% के आसपास था। हमारी नजर में ये चिंता की बात थी। जिस रफ्तार से भारत का टीकाकरण कार्यक्रम चल रहा था, उस रफ्तार से देश को शत-प्रतिशत टीकाकरण कवरेज हासिल करने में 40 साल लग जाते। हमने इस समस्या के समाधान के लिए मिशन इंद्रधनुष को लॉन्च किया है। हमने तय किया कि इस मिशन के माध्यम से युद्ध स्तर पर वैक्सीनेशन किया जाएगा और देश में जिसको भी वैक्सीनेशन की जरूरत है। उसे वैक्सीन देने का प्रयास होगा। हमने मिशन मोड में काम किया।
आगे बढ़ रहे थे कि कोरोना ने घेर लिया
हमने 5-7 साल में ही वैक्सीनेशन कवरेज 60% से बढ़ाकर 90% तक पहुंचा दिया। हमने वैक्सीनेशन की स्पीड और दायरा दोनों बढ़ा दिया। बच्चों को कई जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए कई नए टीकों को अभियान का हिस्सा बनाया। हमें हमारे देश के बच्चों की चिंता थी, गरीब की चिंता थी, गरीब के बच्चों की चिंता थी, जिन्हें कभी टीका लग ही नहीं पाया। हम सही तरह से आगे बढ़ रहे थे कि कोरोना वायरस ने हमें घेर लिया। देश ही नहीं दुनिया के सामने फिर पुरानी आशंकाएं घिरने लगीं कि भारत कैसे इतनी बड़ी आबादी को बचा पाएगा। जब नीयत साफ होती है और नीति स्पष्ट होती है और निरंतर परिश्रम होता है तो नतीजे भी मिलते हैं। हर आशंका को दरकिनार करके भारत में एक साल के भीतर ही एक नहीं बल्कि दो मेड इन इंडिया वैक्सीन लॉन्च कर दी।
वैज्ञानिकों ने दिखा दिया कि भारत किसी से पीछे नहीं
हमारे देश के वैज्ञानिकों ने ये दिखा दिया कि भारत बड़े-बड़े देशों से पीछे नहीं है। आज जब बात कर रहा हूं तो देश में 23 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज दी जा चुकी है। हमारे यहां कहा जाता है कि विश्वासेन सिद्धि यानी हमारे प्रयासों से सफलता तब मिलती है जब हमें स्वयं पर विश्वास होता है। हमें पूरा विश्वास था कि हमारे वैज्ञानिक बहुत ही कम समय में वैक्सीन बनाने में सफलता हासिल कर लेंगे। इसी विश्वास के चलते जब हमारे वैज्ञानिक अपना रिसर्च वर्क कर रहे थे, तभी हमने तैयारियां कर ली थीं।
आने वाले दिनों में वैक्सीन की सप्लाई बढ़ने वाली है
पिछले साल अप्रैल में जब कोरोना के कुछ हजार केस थे, तभी हमने वैक्सीन टास्क फोर्स का गठन कर दिया था। भारत के लिए वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को हर तरह से सपोर्ट किया। वैक्सीन निर्माताओं को क्लीनिकल ट्रायल में मदद की गई। रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए जरूरी फंड दिया गया। हर स्तर पर सरकार उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली। आत्मनिर्भर पैकेज के तहत मिशन कोविड सुरक्षा के जरिए हजारों करोड़ रुपए उपलब्ध कराए गए। पिछले कई समय से देश जो लगातार प्रयास कर रहा है, उससे आने वाले दिनों में वैक्सीन की सप्लाई बढ़ने वाली है।
इतने कम समय में वैक्सीन बनाना बहुत बड़ी उपलब्धि
देश में 7 कंपनियां अलग-अलग वैक्सीन का प्रोडक्शन कर रही हैं, ट्रायल कर रही हैं, दूसरे देशों से भी इस प्रक्रिया को तेज करने का प्रयास किया गया है। कुछ एक्सपर्ट ने बच्चों को लेकर चिंता जाहिर की है। इस दिशा में भी दो वैक्सीन का ट्रायल तेजी से चल रहा है। देश में नेजल वैक्सीन पर भी रिसर्च जारी है। देश में अगर निकट भविष्य में इस वैक्सीन में सफलता मिलती है तो वैक्सीन अभियान में और ज्यादा तेजी आएगी। इतने कम समय में वैक्सीन बनाना अपने आप में पूरी मानवता के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसकी अपनी सीमाएं भी हैं।
WHO के मानकों पर वैक्सीनेशन शुरू किया
वैक्सीन बनने के बाद भी दुनिया के बहुत कम देशों में वैक्सीनेशन शुरू हुआ। ज्यादातर समृद्ध देशों में ये शुरू हुआ। डब्ल्यूएचओ ने वैक्सीनेशन को लेकर गाइडलाइंस दीं। वैज्ञानिकों ने रूपरेखा बनाई। भारत ने भी अन्य देशों की बेस्ट प्रैक्टिस को और डब्ल्यूएचओ के मानकों पर वैक्सीनेशन शुरू किया।
वैक्सीन से लाखों देशवासियों का जीवन बचा पाए
केंद्र ने राज्यों और सांसदों से मिले सुझावों के लिहाज से तय किया कि कोरोना से जिन्हें ज्यादा खतरा है, उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसे में फ्रंट लाइन वर्कर्स और हेल्थ वर्कर्स के अलावा 60 और 45 साल से ऊपर के नागरिकों को वैक्सीन लगाई गई। अगर कोरोना की दूसरी वेव से पहले फ्रंटलाइन वर्कर्स को वैक्सीन न लगी होती तो क्या होता। अस्पतालों के सफाई कर्मियों, एंबुलेंस के ड्राइवर को वैक्सीन न लगती तो क्या होता। ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगने से ही लाखों देशवासियों का जीवन बचा पाए हैं।
राज्यों को गाइडलाइंस दीं ताकि वे सहूलियत से काम कर सकें
देश में कोरोना के कम होते मामलों के बीच केंद्र के सामने अलग सुझाव भी आने लगे। मांगें उठने लगीं। पूछा जाने लगा कि सबकुछ भारत सरकार ही क्यों नहीं तय कर रही। राज्य सरकारों को छूट क्यों नहीं दी जा रही। लॉकडाउन की छूट राज्य सरकारों को क्यों नहीं मिल रही है। वन साइज डज नॉट फिट फॉर ऑल की दलील दी गई। कहा गया कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है इसलिए इस दिशा में शुरुआत की गई। हमने एक गाइडलाइन बनाकर राज्यों को दी ताकि वे अपनी सुविधा के अनुसार काम कर सकें।
मोदी का राष्ट्र के नाम अचानक संदेश क्यों, पूरा एनालिसिस पढ़ने के लिए क्लिक करें…
पिछले संदेश में मोदी ने कही थीं ये 5 बातें
1. 20 अप्रैल 2021 को मोदी ने कहा था- साथियों! आज की स्थिति में हमें देश को लॉकडाउन से बचाना है। मैं राज्यों से भी अनुरोध करूंगा कि वे लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में ही इस्तेमाल करें। लॉकडाउन से बचने की भरपूर कोशिश करनी है। माइक्रो कंटेनमेंट जोन पर ही ध्यान केंद्रित करना है।
2. नवरात्रि, रामनवमी और रमजान को लेकर कहा था- मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का हम सभी काे यही संदेश है कि हम मर्यादाओं का पालन करें। कोरोना से बचने के जो भी उपाय हैं, कृपया उनका शत-प्रतिशत पालन करें। दवाई भी, कड़ाई भी। रमजान हमें धैर्य, संयम, अनुशासन की सीख देता है। कोरोना से जंग में अनुशासन की भी उतनी ही जरूरत है। जब जरूरी हो, तभी बाहर निकलें।
3. कोरोना के खिलाफ देश आज फिर एक बहुत बड़ी लड़ाई लड़ रहा है। दूसरी लहर तूफान बनकर आ गई। जो पीड़ा आप लोगों ने सही है, जो पीड़ा सह रहे हैं, उसका मुझे पूरा एहसास है। जिन लोगों ने बीते दिनों में अपनों को खोया है, मैं सभी देशवासियों की तरफ से उनके प्रति संवेदनाएं व्यक्त करता हूं।
4. देश के सभी डॉक्टरों, मेडिकल-पैरा मेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मी, एंबुलेंस के ड्राइवर, सुरक्षाबल, पुलिसकर्मी सभी की सराहना करूंगा। आपने कोरोना की पहली लहर में भी अपना जीवन दांव पर लगाया था। आज आप फिर दिन-रात जुटे हुए हैं।
5. इस बार कोरोना संकट में देश के अनेक हिस्सों में ऑक्सीजन की डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ी है। केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, प्राइवेट सेक्टर, सभी की पूरी कोशिश है कि हर जरूरतमंद को ऑक्सीजन मिले। ऑक्सीजन प्रोडक्शन और सप्लाई को बढ़ाने के लिए भी कई स्तरों पर उपाय किए जा रहे हैं।