*होलिका दहन: एक अनसुनी कहानी*

बहुत कम लोग जानते हैं कि होलिका दहन की रात सिर्फ प्रह्लाद की विजय की कहानी नहीं है, बल्कि उस रात कुछ ऐसा भी हुआ था जो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया।

कहते हैं कि जब होलिका आग में जल रही थी, उसी समय उस नगर के एक वृद्ध तपस्वी, ऋषि वचस्पति, महल के बाहर खड़े होकर मुस्कुरा रहे थे। जब लोगों ने उनसे पूछा कि वे प्रसन्न क्यों हैं, तो उन्होंने रहस्यमयी स्वर में कहा, “यह केवल एक पाप का अंत नहीं, बल्कि एक शाप की मुक्ति भी है!”

लोग चकित हो गए। तब ऋषि वचस्पति ने बताया कि होलिका को जन्म के समय एक शाप मिला था—वह जिस भी अग्नि को छुएगी, वह अग्नि उसकी आत्मा का दर्पण बन जाएगी। यदि उसका हृदय पवित्र होगा, तो वह अग्नि उसे आशीर्वाद देगी, और यदि वह अधर्म की राह पर चली, तो वही अग्नि उसे भस्म कर देगी।

होलिका को मिला वरदान सिर्फ बाहरी अग्नि से बचाने का नहीं था, बल्कि उसके भीतर की सच्चाई को उजागर करने का माध्यम था। जब वह प्रह्लाद के साथ आग में बैठी, तो अग्नि ने उसके भीतर के छल, कपट और अहंकार को देखा—और उसे भस्म कर दिया। लेकिन होलिका की राख में कुछ चमकता हुआ निकला—एक स्वर्णिम कमल!

ऋषि वचस्पति ने वह कमल उठाया और बोले, “यह उसकी आत्मा की शुद्धता का प्रमाण है, जो अब मुक्त हो चुकी है।”

उस दिन से, होलिका दहन सिर्फ बुराई के अंत का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और कर्मों के न्याय का भी संदेश बन गया। अग्नि कभी भी असत्य को स्वीकार नहीं करती, वह केवल सच को ही बचाती है!

तो इस होली, अपने भीतर की होलिका को पहचानिए और अपने सत्य को आग की कसौटी पर परखिए!

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