शिवजी के नागो की कथा नागजाति शिवजी की परम् भक्त थी| कहते है कि शिवलिगं पूजा नागो ने ही शुरू की थी| जब सागर मंथन हुआ था तब नागो ने शिवजी की मदद के लिए विष का पान करने लगे| जिससे भोलेनाथ उनकी निस्वार्थ भक्ति से प्रसनं हुए और उन्हे अपने साथ रख लिया|
ऋषि कश्यप की दो पत्निया थी विनिता और कृपि| एक दिन ऋषि कश्यप ने अपनी दोनो पत्नियो को वर के लिए कहा| इस पर कृपि ने अनेको संतानो का वर मागा| इसके बाद विनिता ने कहा मुझे सिर्फ दो संतान हो लेकिन मेरी दोनो संताने कृपि की हजारो संतानो ज्यादा श्रेष्ठ हो| ऋषि ने तथास्थो कहा| पहले वर स्वरूप कृपि की अनेको नाग संतान हुयी| जिसमे *शेषनाग सबसे बडे पुत्र थे| शेषनाग के अनेको फन थे| उसके बाद मे विनिता को *वासुकी और तक्षक दो नाग पुत्र हुए| इनमे वासुकी नाग भी कई फन थे लेकिन शेषनाग से बहुत कम थे|
शेषनाग भगवान विष्णु के भक्त थे और वासुकी नाग भोलेनाथ के भक्त थे| वासुकी नाग ने शिवजी की कठोर तपस्या करके उनको प्रसनं किया था और शिवजी को उन्हे अपने पास रह कर उनकी सेवा करने का वरदान लिया था| तब से वासुकी नाग शिवजी के साथ रहने लगे | दूसरी कथा के अनुसार भोलेनाथ और माता पार्वति के विवाह मे नागो ने सेहरा बन कर शिवजी का श्रंगार बने | जिससे शिवजी नागो से अति प्रसनं हुये और नागो को हमेशा अपने पास रख लिया|
शेषनाग के अनेको फन थे| जिसके कारण उनको अनंत नाग भी कहते है| सबसे पहले वही नागो के राजा बने|
वासुकी वनिता के पुत्रो मे बडी संतान था| जब शेषनाग पृथ्वी छोड जाने लगे तब उन्होने वासुकी नाग को नागो का राजा बना दिया|
जब श्री कृष्ण को वासुदेव जमुना नदी केपार ले जा रहे थे तब वासुकी नाग ने ही उनको छाया की थी| मगर कई फन होने के कारण लोग इनको शेषनाग समझ लेते हैं