*स्वर्ण मंदिर में चार दरवाजे क्यों*

 

भारत ही नहीं दुनिया भी जिसे स्वर्ण मंदिर के नाम से पुकारती हैं वह सिख धर्म के लोगों का धार्मिक गुरुद्वारा है जिसे भारत के पंजाब में अमृतसर शहर में है।

 

लेकिन आपको पता है कि स्वर्ण मंदिर इस पवित्र स्थान का असली नाम नहीं हैं बल्कि स्वर्ण मंदिर का असली नाम श्री हरमंदिर साहिब (देवस्थान) है जिसे श्री दरबार साहिब के नाम से भी पुकारा जाता है।

 

हरमंदिर साहिब की जो विशेषताएं है उसमें से एक विशेषता इसमें चारों कोनों पर बने चार दरवाजे भी हैं. जबकि आम तौर पर धार्मिक स्थलों में एक ही द्वार होता है।

 

इसके पीछे एक विशेष कारण है. हरमंदिर साहिब में बने चार मुख्य द्वार सिखो की दूसरे धर्मो के प्रति सोच को दर्शाते है, उन चार दरवाजो का अर्थ यह है कि कोई भी, किसी भी धर्म का इंसान उस मंदिर में आ सकता है।

 

वर्तमान में सवा लाख से भी अधिक लोग रोज स्वर्ण मंदिर में भक्ति-आराधना करने के उद्देश्य से आते है और सिख गुरुद्वारे के मुख्य प्रसाद‘लंगर’ को ग्रहण करते हैं।

 

बताते चलें कि स्वर्ण मंदिर अमृतसर की स्थापना 1574 में चैथे सिख गुरु, गुरु रामदासजी ने की थी. पाँचवे सिख गुरु, गुरु अर्जुन ने हरमंदिर साहिब के निर्माण की रूप-रेखा बनाई थी. हरमंदिर साहिब बनाने का मुख्य उद्देश्य पुरुष और महिलाओं के लिये एक ऐसी जगह को बनाना था जहा दोनों समान रूप से भगवान की आराधना कर सके।

 

खालसा पंथ मान्यताओ के अनुसार हरमंदिर साहिब के अंदर सिख धर्म का प्राचीन इतिहास भी बताया गया है. हरमंदिर साहिब कॉम्पलेक्स अकाल तख्त पर ही स्थापित किया गया है।

 

लेकिन 19वी शताब्दी के शुरू में जब पंजाब पर तुर्कों ने आक्रामण किया तो महाराजा रणजीत सिंह ने बाहरी आक्रमणों से इसको बचाया. साथ ही उन्होंने गुरूद्वारे के ऊपरी भाग को सोने से ढकवा दिया. उसके बाद से हरमंदिर साहिब में लोगों ने सोना चढ़ाना शुरू कर दिया।

 

वहां पर भक्त इतना सोना अर्पित करते हैं कि इस मंदिर में जहां गुरू ग्रंथ साहिब की पूजा की जाती है और कीर्तन होता है उसकी पूरी छत सोने से ढ़की गई है।

 

मंदिर के मुख्य स्थान पर स्वर्ण से लिपाई के कारण ही इसका नाम स्वर्ण मंदिर प्रचलित हो गया।

 

स्वर्ण मंदिर आज एक वैश्विक धरोहर है, जहा देश ही नहीं बल्कि विदेशो से भी लोग आते हैं और इसकी लंगर सेवा भी दुनिया की सबसे बड़ी सेवा है,यहाँ 40 हजार से ज्यादा लोग रोज सेवा करते है।

 

।। वाहे गुरु का फालसा वाहे गुरु की फतेह ।।

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