अगर आप इंटरनेट मीडिया की आभासी दुनिया से कुछ देर के लिए बाहर निकल आएं तो क्या इसकी कल्पना भी कर सकते हैं कोई लुटेरा किसी राज्य के पुलिस महानिदेशक के नाम पर ठगी करने जैसा दुस्साहस करे और पुलिस तमाम हाथ-पैर मारकर भी उस तक पहुंचने में बहुत जल्द कामयाब न हो। हो सकता है आपका जवाब न में हो, लेकिन झारखंड में ऐसा ही हो रहा है। हम-आप क्या, इससे पुलिस तक सकते में है।
साइबर ठगों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। इनसे आमजन से लेकर पुलिस-प्रशासन के आला अफसर तक हलकान हैं। यह हाल तब है जब इंटरनेट मीडिया के जरिये ठगी के उस्ताद हो चुके साइबर ठगों की कमर तोड़ने के लिए कई स्तर पर मोर्चेबंदी हो रही है। राज्य पुलिस से लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) तक सक्रिय हैं और झारखंड में इन ठगों द्वारा अर्जित की गई करीब 100 करोड़ की अकूत संपत्ति को जब्त करने की कार्रवाई भी चल रही है। बावजूद इसके साइबर ठगी के मामलों में लगातार बढ़ ही रहे हैं।ताजा मामला राज्य के डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) नीरज सिन्हा से जुड़ा है। शातिर ठगों ने डीजीपी की फर्जी फेसबुक आइडी बनाकर उनके मित्रों को दोस्ती का निमंत्रण भेजा। जिन्होंने दोस्ती का निमंत्रण स्वीकार कर लिया, उनसे मैसेंजर पर रुपये की मांग की। हालांकि डीजीपी को इसका तत्काल पता चल गया और उन्होंने अपनी फेसबुक वाल पर एक संदेश पोस्ट कर लोगों को फर्जी फेसबुक खाते की जानकारी देकर आगाह किया कि उनके फर्जी आइडी से किए गए किसी तरह के आग्रह को न स्वीकारें। रांची साइबर थाने में इस मामले का मुकदमा भी दर्ज कर लिया गया। झारखंड में पिछले एक साल में ही साइबर ठग करीब 15 पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों और अन्य नामचीन हस्तियों की फेसबुक आइडी का क्लोन बनाकर ठगी की साजिश कर चुके हैं। साइबर सेल आज तक उनमें से किसी ठग तक नहीं पहुंच सकी है। कारण है, झारखंड पुलिस के पास साइबर अपराध रोकने के लिए संसाधनों का सीमित होना।