कानपुर की लालइमली और कोतवाली की लौटेगी पुरानी चमक, केएससीएल तीन करोड़ से कराएगा सौंदर्यीकरण

कानपुर l वैसे तो कानपुर शहर अपने आप में कई धरोंहरों को सजोए हुए हैं। लेकिन अगर हम कानपुर का नाम लें और यहां की सबसे पुरानी इमारत लालइमली और कानपुर कोतवाली को भूल जाएं ऐसा नहीं हो सकता। अब इन दोनों प्रतिष्ठित बिल्डिंग के दिन बहुरने वाले हैं। दोनों बिल्डिंग के सुंदरीकरण का रास्ता साफ हो गया है। केएससीएल लगभग तीन करोड़ से दोनों बिल्डिंगों का कायाकल्प करेगा। केएससीएल ने कानपुर कोतवाली के लिए 1.93 करोड़ और लालइमली मिल के नवीनीकरण के लिए 1.08 करोड़ की निविदाएं जारी की हैं। इस राशि से कानपुर कोतवाली को पूरी तरह से पुनर्निर्मित किया जाएगा। जबकि लालइमली मिल को केवल कुछ प्रकाश व्यवस्था के साथ सुशोभित किया जाएगा।

  • यहां जानिए दोनों बिल्डिंग का इतिहास 

लालइमली मिल की वर्ष 1876 में हुई थी स्थापना

लालइमली मिल की स्थापना वर्ष 1876 में जार्ज ऐलन, वीई कूपर, गैविन एस जोन्स, डा.कोंडोन और बिवैन पेटमैन आदि ने की थी। पहले यह मिल ब्रिटिश सेना के सिपाहियों के लिए कंबल बनाने का काम करती थी। तब इसका नाम कॉनपोरे वुलन मिल्स था। बाद में मिल परिसर में लाल इमली के पेड़ होने की वजह से इसका नाम लालइमली पड़ा। इसकी पहचान दमदार क्वालिटी की वजह से भी थी। वर्ष 1920 में ब्रिटिश इंडिया कॉर्पोरेशन स्थापित किया गया और लाल इमली को एक निदेशक मंडल द्वारा लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया। वर्ष 1956 में मुद्रा घोटाले के बाद निदेशक मंडल को भंग कर दिया गया। 11 जून 1981 को किए गए राष्ट्रीयकरण में यह मिल भारत सरकार के अधीन हो गई, जहां से इसके पतन की शुरुआत हुई। वर्ष 1992 में यह बीमार यूनिट घोषित कर दी गई।

कानपुर कोतवाली की 84 साल पहले रखी गई थी आधारशिला

कानपुर कोतवाली की आधारशिला 84 साल पहले अंग्रेज गवर्नर ने रखी थी। बड़ा चौराहा के पास बनी शहर की पहली कोतवाली का भूमि पूजन 10 मार्च 1936 को आगरा और अवध के गवर्नर जनरल हैरी हैग ने किया था। दो मंजिला काेतवाली की इमारत लगभग 25 महीने में बनकर तैयार हुई थी। 26 अप्रैल 1938 को कोतवाली का संचालन शुरू हुआ था। इसकी डिजाइन आईएसई अधिकारी रायबहादुर श्रीनारायण ने तैयार की थी और एसएस भार्गव कांट्रैक्टर थे। कोतवाली में लगे शिलालेख पर नजर डालें तो इसका निर्माण कानपुर एंपावरमेंट ट्रस्ट द्वारा किया गया था। बताया जाता है कि उस जमाने में अंग्रेज पुलिस अधिकारी पूरे शहर पर यहीं से नियंत्रण रखते थे। उनके बैरक भी कोतवाली परिसर में होते थे और चौबीस घंटे मौजूद रहते थे। उस समय अंग्रेज अधिकारी थानेदार होता था, बाद नमें शहर का विस्तार होने पर थाने बढ़े तो अधिकारी पद भी बढ़ाए गए। मौजूदा समय में भवन में कोतवाली का संचालन होने के Z क्षेत्राधिकारी कोतवाली, एसपी पूर्वी और सिख दंगों के लिए गठित एसआईटी का कार्यालय भी संचालित है। बैरक को पुलिस कर्मियों के आवास के लिए प्रयोग किया जा रहा है।

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