नवरात्रि पर्व में तीज और चौथ एक दिन है

नवरात्रि पर्व में तीज और चौथ एक दिन है
माँ दुर्गा की तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा का है।
नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।
माँ चन्द्रघण्टा का यह स्वरूप बेहद ही सुंदर, मोहक, अलौकिक शांतिदायक और कल्याणकारी है।
माता चंद्रघंटा के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्रमाँ विराजमान है जिस कारण इन्हें चंद्र घंटा के नाम से जाना जाता है।

माता चन्द्रघंटा देवी का स्वरूप तपे हुए सोने के समान कांतिमय लगता है।
माँ चंद्रघंटा के दस भुजाएं हैं और दसों हाथों में खड्ग, बाण सुशोभित है।
ऐसी मान्यता है कि माता के घंटे की तेज व भयानक ध्वनि से दानव, और अत्याचारी राक्षस सभी बहुत डरते है देवी चंद्रघंटा अपने भक्तों को अलौकिक सुख देने वाली है।
माता चंद्रघंटा का वाहन सिंह है और यह सिंह की सवारी करती है।
यह हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने वाली मुद्रा में होती है।
माँ चंद्रघंटा के गले में सफेद फूलों की माला रहती है।

नवरात्रि के चतुर्थ दिन, मां कूष्मांडा जी की पूजा की जाती है। यह शक्ति का चौथा स्वरूप है, जिन्हें सूर्य के समान तेजस्वी माना गया है। मां के स्वरूप की व्याख्या कुछ इस प्रकार है, देवी कुष्मांडा व उनकी आठ भुजाएं हमें कर्मयोगी जीवन अपनाकर तेज अर्जित करने की प्रेरणा देती हैं, उनकी मधुर मुस्कान हमारी जीवनी शक्ति का संवर्धन करते हुए हमें हंसते हुए कठिन से कठिन मार्ग पर चलकर सफलता पाने को प्रेरित करती है।

भगवती दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था। चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था। तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनकी आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है।

इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। मां कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं।

इनका वाहन सिंह है। नवरात्र -पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरुप की ही उपासना की जाती है। इस दिन माँ कूष्माण्डा की उपासना से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

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